आज का संकल्प पाठ     ---------------------------------- (सृष्टि संवत् - संवत्सर-अयन - ऋतु- मास-तिथि- नक्षत्र)


 


 


ओ३म् सादर नमस्ते जी 
आपका दिन शुभ हो 


दिनांक  - -२८ सितम्बर २०२०
दिन  - - सोमवार  
तिथि  - -  द्वादशी  
नक्षत्र - - धनिष्ठा  
पक्ष  - - शुक्ल 
माह  - - आश्विन ( द्वितीया)
ऋतु  - - शरद्  
सूर्य  - - दक्षिणायन 
सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,१२१
कलयुगाब्द  - - ५१२१
विक्रम संवत्  - - २०७७
शक संवत्  - - १९४२
   🔥ओ३म्....!


                🌷अनुपम उपदेश रत्नावली🌷


     मूल्य का विचार मत करो―दो वस्तुओं के अधिक मूल्य का विचार मत करो।
(१) पुस्तक यदि मनपसन्द हो (२) औषध यदि फायदेमन्द हो।


    - एकान्तवास―एकान्तवास से तीन लाभ प्राप्त होते हैं।(१) स्वास्थय की वृद्धि, (२) आत्मिक शक्ति (३) धर्म की वृद्धि।


     चोरी―चोर केवल वही मनुष्य नहीं जो किसी की वस्तु को चुराता है अपितु वह भी है जो झूठ बोलता है क्योंकि वह जानी वा समझी बात को छिपाता है।


    भक्त―भक्त केवल वही नहीं जो दिन रात ईश्वर की भक्ति करे अपितु वह भी है, जो लोक सेवा में तत्पर रहे।


    आत्मवत व्यवहार―जो व्यवहार तू अपने लिए पसन्द नहीं करता वह दूसरों के लिए भी मत कर।


    धार्मिक की पहचान―धार्मिक मनुष्य वह है जिससे लोग अपनी जान व माल को सुरक्षित समझें।


   - हानि नहीं―संसार की कोई वस्तु तेरे पास न हो किन्तु निम्न चार हों तो तुझे हानि नहीं, (१) सत्य का आचार (२) पर धरोहर का परिहार (३) सबसे सद्व्यवहार (४) नेक कमाई अथवा शुद्ध व्यापार।


    कन्या का महत्त्व―जो वस्तु सन्तान के लिए बाजार से घर लाओ, पहले लड़की को दो पुन: लड़के को।


    शुभ कार्य―जिसको अपने शुभकर्मों पर विश्वास है वही मृत्यु का आलिंगन करता है दूसरा नहीं। अत: उस दिन पर सोच, जो व्यतीत हो गया और तूने कोई शुभकर्म नहीं किया।


    उदारता―दूसरों के दु:ख को अपने ऊपर ले लेना वास्तव में उदारता है।


    आश्चर्य की बात―आश्चर्य है उस मानव पर जिसे मृत्यु का निश्चय है और फिर भी पापासक्त है। आश्चर्य है उस इन्सान पर जो संसार को नाशवान जानता है फिर भी उसमें फंसा है, आश्चर्य है उस मनुष्य पर जो ईश्वर विश्वासी हो और फिर भी चिन्तातुर रहे। आश्चर्य है उस बुद्धिमान पर जो दुर्गति से बचना चाहता है और फिर भी दुष्कर्म करता है। आश्चर्य है उस व्यक्ति पर जो ईश्वर भक्त होकर भी उसके स्थान पर दूसरी वस्तु का पूजन करे, आश्चर्य है ऐसे योगी पर जो मुक्ति का इच्छुक है और विषयों में लीन है।


    दुष्ट―बुरे लोगों की जिस प्रकार चाहे परीक्षा कर ले, सांप और बिच्छुओं से कम न पायेगा।


    भगवान की व्यापकता ―हे मानव ! यदि तू पाप करने का इच्छुक है तो ऐसे स्थान की खोज कर जहां भगवान् न हों।


   भक्ति―हे मानव ! यदि तू उसकी भक्ति नहीं करना चाहता तो उसकी बनाई वस्तुओं का प्रयोग और उपभोग भी न कर। पशु अपने मालिक को पहचानता है किन्तु आश्चर्य है, इन्सान अपने भगवान को नहीं पहचानता।


   नासमझ―संसार एक सराय है परन्तु नासमझों ने इसे अपना घर समझ रखा है।


 सज्ज-दुर्जन―सज्जन का स्वभाव है कि जब कोई कठोरता से बरते तो कठोर हो जाता है और जब कोई नम्रता से बरते तो नम्र हो जाता है इसके विपरित दुर्जन का स्वभाव है कि जब कोई नम्रता से बरते तो कठोर हो जाता है और कठोरता से बरते तो नम्र हो जाता है।


  उपकार―जब तू किसी का उपकार करे तो उसे छिपा। यदि कोई तेरा उपकार करे तो उसे सबके सम्मुख प्रकट कर।


   कृपा पात्र कौन―(१) वह विद्वान् जो मूर्खों के आदेश से काम करे, (२) वह सज्जन जिस पर दुर्जन शासक हो, (३) वह गुणवान जो निर्गुणियों के अधीन हो। ये तीनों सर्वाधिक कृपा के पात्र हैं।


    हिसाब―ओ भोले, मकानों के बनाने में आयु व्यतीत कर रहा है। बसेंगे दूसरे और हिसाब देगा तू।


   पाप―जो मनुष्य पाप करते समय किवाड़ों को बन्द कर लेता है, लोगों से छिप जाता है और एकान्त में उसकी आज्ञा को भंग करता है तो प्रभु कहता है, ओ मूर्ख, तूने अपनी ओर देखने वालों में मुझे ही सबसे कम समझा है कि सबसे परदा करना आवश्यक समझता है और मुझ से लोगों के बराबर भी लज्जा नहीं करता।


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   🕉️🚩आज का वेद मंत्र  🕉️🚩


🌷ओ३म् तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं धियञ्जिन्वमवसे हूमहे वयम्। पूषा नो यथा वेदसामसद् वृधे रक्षिता पायुरदब्ध:स्वस्तये।(ऋग्वेद २५|१८)


💐अर्थ  :-  चर और अचर जगत् के स्वामी, हमारी बुद्धि को तृप्त करने वाले परमात्मा को अपनी रक्षा के लिए हम पुकारते हैं, जिससे कि वह पोषक हमारे ज्ञान व धनों की बढ़ती और समृद्धि के लिए हमारी सदा रक्षा करें ।


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 आज का संकल्प पाठ 
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(सृष्टि संवत् - संवत्सर-अयन - ऋतु- मास-तिथि- नक्षत्र)🔥💥🌟☀️
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           ओं तत्सद्।श्री व्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे सप्तमे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे ,{ एकोवृन्दः षण्णवतिकोटि: अष्टलक्षानि त्रिपञ्चाशत्सहस्राणि एकविंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२१) सृष्टिसंवत्सरे } { पच्चसहस्स्राणि एकविंशत्युत्तरशततमे ( ५१२१ ) कलियुगे } { सप्तसप्तत्युत्तर द्विसहस्रतमे ( २०७७) विक्रमसंवत्सरे } {षण्णवत्यधिकशततमे (१९६) दयानंद संवत्सरे }  रवि दक्षिणायने, शरद् ऋतौ,आश्विन मासे, शुक्ल पक्षे, द्वादशी तिथि, धनिष्ठा नक्षत्रे, सोमवासरे, तदनुसार २८ सितम्बर  २०२०
जम्बूद्वीपे,  भरतखण्डे आर्यावर्त्तान्तरगते .........प्रदेशे ,........जनपदे.. ..नगरे......गोत्रोत्पन्नः....श्रीमान. (पितामह)....(पिता)...पुत्रस्य... अहम् .'(स्वयं का नाम)....अद्य  प्रातः कालीन वेलायाम्  सुख शांति समृद्धि हितार्थ ,आत्मकल्याणार्थ ,रोग -शोक निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृ


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