आज का संकल्प पाठ 

ओ३म् सादर नमस्ते जी


आपका दिन शुभ हो 


 


दिनांक  - -  ०४ सितम्बर २०२०


दिन  - -  शुक्रवार 


तिथि  - -  द्वितीया 


नक्षत्र  - - उत्तराभाद्रपद 


पक्ष - - कृष्ण 


माह  - - आश्विन 


ऋतु  - - शरद  


सूर्य  - - दक्षिणायन 


सृष्टि संवत्  - - १.९६,०८,५३,१२१


कलयुगाब्द - - ५१२१


विक्रम संवत्  - - २०७७


शक संवत्  - - १९४२


दयानंदाब्द  - - १९६


 


 


 


 मोक्ष प्राप्ति 


 


 


    मोक्ष प्राप्ति का पूरा ज्ञान सत्यार्थप्रकाश के नवम् समुल्लास को पढ़कर किया जा सकता है। सभी मनुष्यों को मोक्ष के विषय में अवश्य जानना चाहिये और इसके लिए प्रामाणिक ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश ही है या वह ग्रन्थ हैं जहां से सत्यार्थप्रकाश की सामग्री का संकलन ऋषि दयानन्द जी ने किया था। 


 


    प्राचीन काल में हमारे समस्त ऋषि-मुनि, ज्ञानी व विद्वान सभी मोक्ष को सिद्ध करने के लिए वेद एवं वैदिक शास्त्रों के अनुसार साधना करते थे। अब भी कोई करेगा तो वह इस जन्म व कुछ जन्मों में मोक्ष को अवश्य प्राप्त कर सकता है क्योंकि वेद के ऋषियों ने जो सिद्धान्त दिये हैं वह उनके गहन तप, स्वाध्याय, साधना एवं ईश्वर साक्षात्कार के अनुभव के आधार पर हैं। ऋषि दयानन्द में यह सभी गुण विद्यमान थे, अतः उनके सभी सिद्धान्त भी प्रामाणिक हैं। 


 


       वेद व सत्यार्थप्रकाश आदि का अध्ययन करने के बाद यह तथ्य सामने आता है कि हम इस जन्म से पूर्व पिछले जन्म में कहीं मृत्यु को प्राप्त हुए थे। उस जन्म व उससे पूर्व कर्मों के भोग के लिए हमारा यह जन्म हुआ था। इस जन्म में भी वृद्धावस्था आदि में हमारी मृत्यु अवश्य होगी जिसे हम वेद आदि ग्रन्थों के अध्ययन से जानकर मृत्यु के भय से मुक्त हो सकते हैं। वेद स्वाध्याय, यज्ञ, दान, सेवा, साधना व उपासना से हम जीवनमुक्त अवस्था को प्राप्त कर व मोक्ष को प्राप्त होकर अभय व निर्द्वन्द हो सकते हैं। 8109070419


 


    आईये, ईग्श्वरीय निर्भ्रान्त ज्ञान वेद व सत्यार्थप्रकाश आदि ऋषिकृत ग्रन्थों के स्वाध्याय का व्रत लें। उनमें निहित ज्ञान को प्राप्त कर साधना करें और मोक्ष प्राप्ति के साधनों को अपनायें। मृत्यु के भय से मुक्त होकर हम अन्यों में भी जीवन व मृत्यु के रहस्य का प्रचार कर उन्हें भी अभय प्रदान करें। 


 


 


 


आज का वेद मंत्


 


ओ३म् नृचक्षसो अनिमिषन्तो अर्हणा बृहद्देवासो अमृतत्वमानशु: ।ज्योतिरथा अहिमाया अनागसो दिवो वर्ष्माणं वसते स्वस्तये ( ऋग्वेद  १०|६३|१४)


 


अर्थ  :- मनुष्यमात्र के योगक्षेम पर दृष्टि रखने वाले, सदा सावधान रहने वाले, आदर के पात्र, बहुत बड़े विद्वान् जन अमरत्व को प्राप्त करते हैं। ज्ञान मार्ग के पथिक, बुद्धि के धनी, निष्पाप, प्रकाश वाले, उच्च स्थान प्राप्त करने वाले हमारे लिए कल्याणकारी हों।


 


 


 


 आज का संकल्प पाठ 


   


(सृष्टि संवत् - संवत्सर-अयन - ऋतु- मास-तिथि- नक्षत्र)


_रार्धे सप्तमे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे ,{ एकोवृन्दः षण्णवतिकोटि: अष्टलक्षानि त्रिपञ्चाशत्सहस्राणि एकविंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२१) सृष्टिसंवत्सरे } { पच्चसहस्स्राणि एकविंशत्युत्तरशततमे ( ५१२१ ) कलियुगे } { सप्तसप्तत्युत्तर द्विसहस्रतमे ( २०७७) विक्रमसंवत्सरे } {षण्णवत्यधिकशततमे (१९६) दयानंद संवत्सरे }  रवि दक्षिणायाने, शरद ऋतौ, आश्विन मासे, कृष्ण पक्षे, द्वितीया तिथि, उत्तराभाद्रपद नक्षत्रे, तदनुसार ०४ सितम्बर  २०२०


जम्बूद्वीपे,  भरतखण्डे आर्यावर्त्तान्तरगते .........प्रदेशे ,........जनपदे.. ..नगरे......गोत्रोत्पन्नः....श्रीमान. (पितामह)....(पिता)...पुत्रस्य... अहम् .'(स्वयं का नाम)....अद्य  प्रातः कालीन वेलायाम्  सुख शांति समृद्धि हितार्थ ,आत्मकल्याणार्थ ,रोग -शोक निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे।


 


samelan, marriage buero for all hindu cast, love marigge , intercast marriage , arranged mar 


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