यदि आप चाहते हैं, कि लोग आपके प्रति प्रेम श्रद्धा विश्वास और सम्मान की भावना रखें

ओ३म्
नमस्ते जी 
        यदि आप चाहते हैं, कि लोग आपके प्रति प्रेम श्रद्धा विश्वास और सम्मान की भावना रखें, आपको सुख देवें, तो आपको सबके साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करना होगा।
       यह संसार ईश्वर ने बनाया है। वह सर्वव्यापक और सर्वशक्तिमान् है। ईश्वर ही इस संसार का सबसे बड़ा राजा है। इसलिए संसार में उसी का शासन सर्वोपरि है। 
       आप और हम, ईश्वर के द्वारा बनाए गए संसार में रहते हैं। वह हमारा राजा है, और हम उसकी प्रजा हैं। उस राजा का  संविधान हम सब पर लागू होता है। यदि प्रजा, राजा के संविधान का पालन करती है, तो उसे राज्य व्यवस्था से सुख मिलता है। यदि प्रजा, राजा के संविधान का पालन नहीं करती, तो राज्य व्यवस्था से प्रजा को दुख मिलता है। 
         मनुष्य की राज्य व्यवस्था में तो कमियां होती रहती हैं, क्योंकि मनुष्य सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान् नहीं है। वह सब ओर देख नहीं पाता। व्यवस्था नहीं कर पाता। परंतु ईश्वर के साथ यह समस्या नहीं है। वह तो सर्वज्ञ तथा  सर्वशक्तिमान् है। वह सदा सावधान रहता है। कभी लापरवाही नहीं करता। कभी किसी पर अन्याय नहीं करता। कभी किसी को कोई रियायत अर्थात् न्याय व्यवस्था में कोई छूटछाट नहीं करता। उसके नियम सबसे उत्तम एवं पूर्ण हैं। इन कारणों से यदि हमें और आपको ईश्वर के राज्य में सुख पूर्वक रहना है, तो यह अनिवार्य है कि हमें और  आपको ईश्वर का संविधान जानना समझना ही पड़ेगा। उसे ठीक प्रकार से जान समझकर, उस का पालन करना पड़ेगा। यदि हम और आप ऐसा नहीं करेंगे, तो निश्चित रूप से ईश्वरीय न्याय व्यवस्था के अंतर्गत हमें और आपको दंड भोगना होगा। और इसके दोषी हम और आप ही होंगे, कोई दूसरा नहीं।
        संसार भर के देशों की सरकारों ने भी बहुत से कानून ईश्वर के संविधान के आधार पर ही बनाए हैं, क्योंकि वे सुखदायक हैं। जैसे न्याय पूर्ण व्यवहार करना, सत्य बोलना, दूसरों की सहायता करना आदि।
इसलिए जितना जितना संसार के लोग ईश्वरीय संविधान का पालन करते हैं, उतनी उतनी मात्रा में वे सब लोग सुखी हैं। और जितनी मात्रा में वे ईश्वरीय संविधान का उल्लंघन (चोरी डकैती झूठ व्यभिचार आदि) दुखदायक कर्म करते हैं, उतनी मात्रा में वे सब दुखी हैं। 
       इसी श्रृंखला में यह निवेदन है कि यदि आप चाहते हैं कि दूसरे लोग आपके साथ अच्छा व्यवहार करें, आपके प्रति प्रेम और सद्भावना रखें, आप पर विश्वास करें, तो इस इच्छा की पूर्ति के लिए आपको भी, ईश्वरीय संविधान के अनुसार, सब के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करना होगा। अन्याय पूर्ण व्यवहार छोड़ना होगा। यह आप कब कर पाएंगे? जब आपके विचार संस्कार चिंतन आदि शुद्ध हो, उत्तम हो। तभी आपकी यह इच्छा पूरी हो पाएगी। इसलिए अपने विचार संस्कार एवं चिंतन को ईश्वरीय संविधान के अनुसार शुद्ध करें।
- स्वामी विवेकानंद परिव्राजक


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