‘वेदाध्ययन और ईश्वर की उपासना क्या प्राप्त होता है

ओ३म्
‘वेदाध्ययन और ईश्वर की उपासना क्या प्राप्त होता है?’
=========
मनुष्य के जीवन वेदाध्ययन का क्या महत्व है? उसे वेदाध्ययन क्यों करना चाहिये? मनुष्य जीवन में यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है जिस पर सबको विचार करके सार्थक व लाभप्रद निष्कर्ष निकाल कर उसे अपने जीवन में धारण कर लाभ उठाना चाहिये। वेदों का महत्व अन्य सभी सांसारिक ग्रन्थों से सर्वाधिक है। इसका कारण यह है कि वेद सृष्टि के आरम्भ में अमैथुनी सृष्टि में ईश्वर द्वारा उत्पन्न चार ऋषि अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा को प्राप्त हुए थे। यह ज्ञान इन चार ऋषियों ने ब्रह्मा जी नाम के ऋषि को दिया था। यहीं से इन ऋषियों द्वारा अन्य मनुष्यों को भाषा सहित ज्ञान देने की परम्परा आरम्भ हुई। आज भी हमारे पूर्वजों के पुरुषार्थ से वेद अपनी उत्पत्ति के लगभग 1.96 अरब वर्ष बाद भी सर्वथा शुद्ध स्थिति में हमें प्राप्त हैं। वेद का दूसरा प्रमुख महत्व यह है कि वेदों से हमें ज्ञात होता है कि ईश्वर ही इस सृष्टि का रचयिता, धारक, पालक तथा संहारक है। ईश्वर का सृष्टि रचना व मनुष्यों को बनाने का सत्य उद्देश्य व रहस्य विदित है। उसी से चार वेद प्राप्त हुए हैं। अतः सभी विषयों का वेदों से अधिक सत्य व पुष्ट ज्ञान अन्य किसी सत्ता व उसके बनाये ग्रन्थ से नहीं हो सकता। हमारे ऋषियों ने वेदाध्ययन कर व इसके माध्यम से ईश्वर का साक्षात्कार कर इस रहस्य को जाना था। वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है और वेदों का पढ़ना व पढ़ाना तथा सुनना व सुनाना ही संसार के सभी मनुष्यों का परम धर्म है। वेदों में संसार की सबसे उत्तम व श्रेष्ठ भाषा वैदिक संस्कृत उपलब्ध होती है। वेदों को नष्ट करने के अपने व परायों ने अनेक प्रयत्न व षडयन्त्र किये। सत्य अविनाशी होता है, इस सिद्धान्त के अनुसार वेद आज भी हमें सुरक्षित प्राप्त हैं व कालान्तर में भी वेद सुरक्षित रहेंगे, ऐसी आशा हम करते हैं। वर्तमान समय में हमें वेदों की जो उपलब्धि हो रही है, उसका मुख्य श्रेय वेदर्षि स्वामी दयानन्द के पुरुषार्थ को ही है। यदि वह जन्म न लेते तो आज हमें वेद सुरक्षित रूप में वेदमन्त्रों के संस्कृत व हिन्दी अर्थों सहित प्राप्त न होते। अतः ऋषि दयानन्द का उपकार मानना तथा वेदों के संरक्षण हेतु वेदों का प्रचार व प्रसार करना सभी ईश्वर को मानने वाले आस्तिक बन्धुओं का परम कर्तव्य है। 


वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है। वेदों में हमें न केवल ईश्वर व आत्मा का सत्य व यथार्थ ज्ञान प्राप्त होता है अपितु संसार विषयक ज्ञान भी प्राप्त होता है। मनुष्य के कर्तव्यों वा धर्म का ज्ञान भी वेदों से ही प्राप्त होता है। संसार में मनुष्यों के सर्वांगीण धर्म का यदि कोई अविद्या से सर्वथा मुक्त ग्रन्थ है, तो वह केवल वेद ही है। वेदों से ही शब्द लेकर हमारे सृष्टि के आदिकालीन पूर्वजों ने स्थानों, पर्वतों एवं नदियों सहित सभी पदार्थों के नाम रखे थे। वेदों से ही हमें ईश्वर के गुण, कर्म व स्वभाव सहित आत्मा के गुण, कर्म व स्वभाव तथा जीवात्मा के जन्म का उद्देश्य व मनुष्य जीवन के लक्ष्य का भी बोध होता है। मनुष्य जीवन का लक्ष्य पूर्व जन्म-जन्मान्तरों में किये हुए कर्मों का भोग करना तथा सृष्टिकर्ता ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना व उपासना सहित देश, समाज तथा संसार के उपकार के लिये किये गये कर्मों को करके जन्म-मरण से छूट कर मोक्ष को प्राप्त होना होता है। 


मनुष्य को अपने अभीष्ट की प्राप्ति के लिये सात्विक साधनों का ज्ञान भी वेद व वेद के ऋषियों द्वारा बनाये गये साहित्य वा शास्त्रों से ही होता है। वेदों को पढ़कर तथा उसके वास्तविक अर्थों व अभिप्राय को समझ कर ही हम वेदों के महत्व को जान सकते हैं तथा उससे लाभ उठा सकते हैं। मनुष्य जहां अनेकानेक सांसारिक कार्यों को करता है, वहीं उसे जीवन का कुछ समय नियमित रूप से वेदों के स्वाध्याय व अध्ययन के लिये भी देना चाहिये। वेदाध्ययन से लाभ ही लाभ है। मनुष्य यदि अधिक न भी करे तो केवल सन्ध्या के मन्त्रों सहित ईश्वर, प्रार्थना, उपासना, स्वस्तिवाचन, शान्तिकरण तथा अग्निहोत्र के मन्त्रों के अर्थों सहित उपनिषद एवं दर्शनों का अध्ययन करके ही अपने जीवन को उन्नत व महान बना सकता है। स्वाध्याय के लिये ऋषि दयानन्द का ‘‘सत्यार्थप्रकाश” भी एक अत्यन्त महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसका अध्ययन करने से वेद, उपनिषद, दर्शन, मनुस्मृति आदि ग्रन्थों वा समस्त वैदिक साहित्य व शास्त्रों के मूल भूत सिद्धान्तों व आशय का ज्ञान हो जाता है। ऐसा करके हम वेदों सहित ईश्वर की उपासना का महत्व जान जाते हैं जिससे हमें स्वस्थ जीवन, दीर्घायु, आरोग्यता, शारीरिक सुख व मानसिक शान्ति तथा परमगति मोक्ष की प्राप्ति होती है। मोक्ष प्राप्ति परम आनन्द की प्राप्ति का एकमात्र उपाय है। हमारे सभी ऋषि, मुनि, योगी तथा महापुरुष राम, कृष्ण तथा दयानन्द ने वेदाध्ययन एवं वेदाचरण का आचरण कर ही परमगति को प्राप्त किया था। इस जीवन में एक स्वर्णिम अवसर परमात्मा ने हमें भी दिया है। इस अवसर से हम सभी को लाभ उठाना चाहिये। महर्षि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश आदि अनेक ग्रन्थ लिखकर व सभी शंकाओं का समाधान कर हमें मोक्ष प्राप्ति के लिये प्रयत्नशील होने का सन्देश दिया है और इसकी प्राप्ति के साधन, उपायों तथा मनुष्य के आचरण पर भी प्रकाश डाला है जिसे हमें जानना व अपनाना है। 


वेदाध्ययन करने से मनुष्य का जन्म लेना सार्थक होता है। मनुष्य का जन्म खाने, पीने व सुख भोगने मात्र के लिये प्राप्त नहीं हुआ है। मनुष्य जन्म हम सबको अपनी आत्मा और इस संसार के रचयिता, पालक व प्रलयकर्ता ईश्वर को जानने व उसकी उपासना कर दुःखों से सर्वथा मुक्त होने के लिये भी मिला है। सन्ध्या में हमें प्रतिदिन यह विचार करना चाहिये कि हम अपने जीवन में अपने कर्तव्यों व उद्देश्यों को पूरा कर रहे हैं अथवा नहीं? अकरणीय कार्यों का त्याग व करणीय को अपनाना ही सुधी मनुष्य का कर्तव्य है। ऐसा करके हम निश्चय ही वेदाध्ययन से प्राप्त होने वाले सद्गुणों को अपनी आत्मा में धारण कर सुखी व आनन्दित होंगे और परजन्म में हमें श्रेष्ठ मनुष्य योनि में उत्तम परिवेश में जन्म प्राप्त होने सहित आत्मा की मुक्ति की संभावनायें बनती है। यही सभी मनुष्यात्माओं के लिये प्राप्तव्य व करणीय है। इसी ओर परमात्मा तथा हमारे विद्वान वैज्ञानिक ऋषियों ने हमारा मार्गदर्शन व ध्यान दिलाया है। हमने परमात्मा व अपने पूर्वज ज्ञानी ऋषियों की आज्ञाओं की उपेक्षा नहीं करनी है अपितु उनसे लाभ उठाना है। ऐसा करके हम अपना, समाज, देश, संसार व समस्त मनुष्यजाति का उपकार व कल्याण कर पायेंगे। 


अपने-अपने समय में मर्यादापुरुषोंत्तम राम, योगेश्वर कृष्ण तथा वेदर्षि दयानन्द जी ने भी यही कार्य किया। ऋषि दयानन्द ने अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये। ऋषि दयानन्द के समय में वैदिक धर्म व संस्कृति को जो चुनौतियां थीं, वह पूर्ववर्ती महापुरुषों के समय में नहीं थी। ऋषि दयानन्द ने ही सनातन वैदिक धर्म तथा संस्कृति को विधर्मी शक्तियों से बचाया है। उनके समय में वेद लुप्त हो रहे थे। उनका उन्होंने उद्धार व प्रचार किया। उन्होंने सभी शास्त्रों के तत्वज्ञान को अपनी पुस्तक सत्यार्थप्रकाश में साधारण हिन्दी पठित मनुष्यों के लिए सृष्टि के इतिहास में प्रथम बार प्रस्तुत किया। सत्यार्थप्रकाश ‘न भूतो न भविष्यति’ ग्रन्थ है। विधर्मियों से शास्त्रार्थ कर ऋषि दयानन्द ने उनके मतों की अविद्या का प्रकाश किया। ऋषि दयानन्द ने वैदिक धर्मियों के धर्मान्तरण वा मतान्तरण का निवारण किया, देश को आजादी दिलाने प्रेरणा की तथा देश से अविद्या का नाश तथा विद्या का प्रकाश करने के लिये गुरुकुल शिक्षा प्रणाली की रूपरेखा प्रस्तुत की। उनके अनुयायियों ने वेदों व वैदिक धर्म की रक्षा के लिए गुरुकुल खोले तथा आधुनिक शिक्षा के अध्ययन व अध्यापन के लिए डीएवी स्कूल व कालेजों का देश भर में प्रसार कर देश से अविद्या को दूर किया। समाज सुधार सहित अन्धविश्वासों को दूर करने में भी आर्यसमाज की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ऋषि दयानन्द ने ही सामाजिक असमानता दूर करने के लिये लोगों को प्रेरित किया। उन्होंने जन्मना जातिवाद को वेदविरुद्ध बताया। उनके अनुसार वैदिक धर्म के अनुसार संसार के सभी मनुष्यों की एक ही जाति होती है। मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से महान होता है। उन्होंने स्त्री व शूद्रों सहित मनुष्य मात्र को वेदाध्ययन, वेद प्रचार, पण्डित बनने, यज्ञ का ब्रह्मा बनने तथा अपने गुण, कर्म व स्वभाव के अनुसार अपने अभीष्ट सात्विक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये प्रेरणा की। सारा संसार उनके देश व समाज हित में किये गये कार्यों के लिये उनका ऋणी एवं कृतज्ञ है। 


वेदाध्ययन और ईश्वर की उपासना से मनुष्य को ईश्वर व आत्मा सहित संसार का यथावत ज्ञान होता है तथा उपासना से आत्मा की उन्नति होकर ईश्वर की प्राप्ति व ईश्वर का साक्षात्कार होता है। उपासक मनुष्य के सभी अभीष्ट सिद्ध होते हैं। सबसे बड़ा लाभ उसे जन्म व मरण के दुःखों से मुक्ति मिल जाती है। वह मोक्ष को प्राप्त होकर ईश्वर के सान्निध्य में रहता हुआ सुख व आनन्द का उपभोग करता है और 31 नील 10 खरब 40 अरब वर्षों से अधिक समय तक जन्म-मरण व दुःखों से सर्वथा मुक्त रहता है। यह कोई छोटी बात नहीं है। अपने जीवन के कल्याण के लिये हमें वेदों की ओर लौटना ही होगा। जीवन कल्याण का संसार में अन्य कोई उपाय नहीं है। ओ३म् शम्। 


samelan, marriage buero for all hindu cast, love marigge , intercast marriage , arranged marriage


-मनमोहन कुमार आर्य


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।