वैज्ञानिक कौन

 



वैज्ञानिक कौन


विज्ञान क्रमबद्ध तथ्यों पर आधारित तर्कसंगत जानकारी का नाम है। जानकारी के क्षे़त्र भिन्न-भिन्न होने से विज्ञान की अनेक शाखायें बन जाती हैं। जानकारी प्राप्त करने के तरीके भिन्न हो सकते हैं। सभी शाखाओं में, सभी तरीकों में एक बात सामान्य होगी और वह है जानकारी का तर्कसंगत होना। तर्कसंगत जानकारी का नाम ही विज्ञान है, तो तर्कसंगत जानकारी का अध्ययन, उसका संग्रह, उसका संवर्धन करने वाला व्यक्ति वैज्ञानिक हुआ। इस कारण वैज्ञानिक होने की आवश्यक व मूलभूत शर्त हुई तर्कसंगत विचार प्रक्रिया। जिस व्यक्ति की विचार शैली तर्कसंगत है, वह व्यक्ति वैज्ञानिक कहला सकता है। विज्ञान की किसी शाखा की अच्छी भली जानकारी हो, उस शाखा से सम्बन्धित बड़ी से बड़ी डिग्री या उपाधि भी हासिल की हो परन्तु विचार प्रक्रिया तर्कसंगत नहीं है तो, वह उपाधिधारी व्यक्ति वैज्ञानिक नहीं है। विज्ञान के किसी विषय की बड़ी सारी डिग्री होना, वैज्ञानिक होने का प्रमाण नहीं है, अपितु वैज्ञानिक विचार एवं प्रक्रिया होना ही वैज्ञानिक होने का प्रमाण है। इतिहास में बहुत सारे उदाहरण हैं जहाँ विज्ञान की किसी औपचारिक डिग्री के बिना ही बहुत बड़े वैज्ञानिक हुये हैं जैसे जोहन डाॅल्टन, माईकल फैराडे, थाम्स एलवा एडिसन, आईन्स्टीन आदि। एक बात और अनिवार्य है वैज्ञानिक होने के लिये कि अपने विषय के अतिरिक्त दूसरे क्षेत्रों में भी उस व्यक्ति की सोच तर्कसंगत होनी चाहिए। मैं बहुत सारे व्यक्तियों को जानता हूँ, जिनके पास अपने विषय की बहुत बड़ी डिग्रियां तो हैं, पर दूसरे विषयों में उनकी सोच तर्कसंगत नहीं है, तो ऐसे उच्च डिग्रीधारी व्यक्तियों को वैज्ञानिक नहीं माना जा सकता।


वैैज्ञानिक होने के लिये तर्कसंगत विचार प्रक्रिया होना तो मूलभूत शर्त है ही, इसके साथ एक अनिवार्यता और है जो वैज्ञानिक की कोटि (Leval) निर्धारित करती है, वह अनिवार्य शर्त है, दूरदृष्टि। वैसे यह शर्त एक वैज्ञानिक के साथ एक राजनेता व एक समाज सुधारक पर भी लागू होती है, पर वैज्ञानिक के लिये यह सबसे आवश्यक है, क्योंकि वैज्ञानिक के कार्य का प्रभाव बहुत दूरगामी होता है। जितना बड़ा वैज्ञानिक अर्थात् जितना महत्वपूर्ण विज्ञान का कार्य, उतनी ही अधिक दूरदृष्टि होना अनिवार्य है। कितनी ही बड़ी वैज्ञानिक खोज किसी वैज्ञानिक ने कर डाली हो, पर यदि वह दूरदृष्टि वाला नहीं है, तो उस वैज्ञानिक को बड़ा वैज्ञानिक कहने में एक बाधा यह आ जायेगी कि उस खोज से मानवता की हानि होगी, तो उसे बड़ा वैज्ञानिक कहना कठिन हो जायेगा। कम से कम यदि उसको बड़ा वैज्ञानिक मान भी लें, तो अच्छा वैज्ञानिक या अच्छा व्यक्ति कहना तो अवष्य मुश्किल होगा।


विज्ञान का उद्देश्य मानव जीवन को सुखी बनाना है। यदि विज्ञान जीवन को दुखदायी या संकटग्रस्त बना दे, तो ऐसे विज्ञान और उस वैज्ञानिक का स्वागत तो नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिये रासायनिक खेेती, जिसने 20-30 वर्ष में जमीन को बंजर बना दिया और जनता को कैन्सर का तोहफा दिया। आरम्भिक वर्षों में उत्पादन बढ़ा कर हरित क्रान्ति कहा गया। अब वही वैज्ञानिक रासायनिक खेती छोड़ कर जैविक खेती की बात कर रहे हैं, जो खेती पहले की ही जाती थी। इन वैज्ञानिकों को 20-30 वर्ष आगे का दिखाई नहीं दिया, तो इनको वैज्ञानिक कैसे कहें? अब जनेटिकली परिवर्तित बीजों की बात हो रही है, वायरसों को परिवर्तित किया जा रहा है, जिसके मानवता के लिये घातक परिणाम हो सकते हैं। पाॅलीथीन की खोज पर यह विचार कहाँ किया गया था कि कुछ वर्षों बाद पाॅलीथीन का कचरा पर्यावरण के सामने विकट संकट खड़ा करेगा। परमाणु बम्ब बनाने वाले वैज्ञानिकों ने कहाँ विचार किया था कि परमाणु हथियार सम्पूर्ण मानवता की नींद हराम कर देंगे। संचार, क्रान्ति में जुटे वैज्ञानिकों को कहाँ पता है कि संचार की तीव्र होती टैक्नोलाॅजी मानवता के लिए एक भंयकर अभिशाप बनकर हमारे परिवेश को सुनसान बना देगी।


यहाँ यह कहें कि इसमें वैज्ञानिकों का दोष कहाँ है, यह तो विज्ञान का दुरुपयोग करने वालों का दोष है, तो यह तो मानना ही पडे़गा कि एक वैज्ञानिक की तार्किक बुद्धि किसी राजनेता, किसी धनपति या जन साधारण से अधिक होती है, तो किसी वैज्ञानिक खोज के भविष्य में होने वाले अच्छे-बुरे परिणामों का आकलन तो वैज्ञानिक को करना ही चाहिए, यदि वह ऐसा नहीं करे वा कर सके, तो कम से कम वह उच्च कोटि का वैज्ञानिक तो नहीं कहला सकेगा।
हम उपर्युक्त वैज्ञानिकों की वैज्ञानिकता व उनकी ईमानदारी पर सन्देह नहीं कर रहे। वास्तव में समस्या यह है कि लगभग सभी वैज्ञानिक भौतिकवादी दर्शन के प्रभाव में रहे हैं। आधुनिक विज्ञान केवल जड़ पदार्थ का अध्ययन करता है। कुछ वैज्ञानिक कहने को अध्यात्मिक दर्शन की बात कर लेते हैं, पर इस दर्शन की ठीक से समझ न होने के कारण उनकी कार्यशैली भौतिकवादी ही रहती है, जिस कारण वे दूरगामी प्रभावों के बारे में नहीं सोच सकते। इस कारण प्रत्येक वैज्ञानिक तार्किक सोच के साथ दूरदृष्टि वाला भी हो और उसकी प्रत्येक वैज्ञानिक उपलब्धि के साथ मानवहित व भविष्य की सुरक्षा भी जुड़ी हो, इसके लिये उसको विज्ञान के साथ आध्यात्मिक विज्ञान का ज्ञान होना अति आवश्यक है। वर्तमान विज्ञान को इसकी महती आवश्यकता है। आचार्य अग्निव्रत जी नैष्ठिक का ‘वेदविज्ञान-आलोकः’ ग्रन्थ आधुनिक विज्ञान को न केवल वैज्ञानिक मार्गदर्शन दे सकता है, अपितु आध्यात्मिक मार्गदर्शन देकर भविष्य को सुखद व सुरक्षित भी बना सकता है। ‘वेदविज्ञान-आलोकः’ सच्चा विज्ञान है और इसके रचनाकार आचार्य अग्निव्रत जी सच्चे अर्थों में वैज्ञानिक हैं। 


✍️  डाॅ. भूपसिंह, रिटायर्ड एसोशिएट प्रोफेसर, भौतिक विज्ञान
      भिवानी (हरियाणा)


 



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