पाखण्ड खण्डन

पाखण्ड खण्डन


स्वामी भीष्म जी महाराज की एक रचना


जग भ्रम में भटक रहा था।
परमाणु से पहाड़ तलक जो खलक रचाने वाला है।
देखा गया कि मनुष्य बना उसको ही बनाने वाला है।
गंगा यमुना और पत्थरों में पागल सर पटक रहा था।।1।।
बकरे भैंस खाने वाली दुर्गा माता काली है।
एक हाथ में खप्पर देखा एक में मद की प्याली है।
पोप हजारों जीवों के सर खड़क से झटक रहा था।2।।
गऊदान कर करके मूर्ख बैतरणी से तरते थे।
मुर्दों के लिये हलवा पूरी जीवित भूखे मरते थे।।
पोप स्वर्ग का ठेका लेकर झूले पर लटक रहा था।।3।।
हजारों विधवा फूंकी आग में महापापी हत्यारों ने।
जाने क्या-क्या कष्ट सहे थे इन अछूत बेचारों ने।।
भोजन पर एतराज पोपजी घी-दूध को गटक रहा था।।4।।
वेद मंत्रों को छोड़ पोप जी हीरे रांझा बांचते थे।
मथुरा वृन्दावन मन्दिरों में बनके जनाने नाचते थे।
दादा से बन करके दादी चैकी पर मटक रहा था।।5।।
कुम्भ के मेलों में बाबा जी देखे नंग धड़ंगे थे।
राख गात में लट्ठ हाथ में बोलें हर-हर गंगे थे।
लोहे की कीलों पर कोई काँटों में अटक रहा था।।6।।
कोई आठ दस धूनी जला रहा कमलगटों की माला है।
उनका तग्गड़ लाल लंगोटा टीका पीला काला है।
बुगला भक्त बन बैठा कोई और माला सटक रहा था।।7।।
भारतवर्ष को डुबा दिया था पापी पोप पाखण्डी ने।
दक्षिण से आकर के देखा ऋषि दयानन्द दन्डी ने।
कहें भीष्म योगी के मन में ये पाखण्ड खटक रहा था। 


 













samelan, marriage buero for all hindu cast, love marigge , intercast marriage , arranged marriage


rajistertion call-9977987777, 9977957777, 9977967777or rajisterd free aryavivha.com/aryavivha app       













Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।