मंनुष्य किसे कहते हैं तो चाणक्य के अनुसार

 



 


 


 


मंनुष्य किसे कहते हैं तो चाणक्य के अनुसार


"यथा चतुर्भिः कनकं परीक्ष्यते निघर्षणच्छेदनतापताडनैः ।
तथा चतुर्भिः पुरुषः परीक्ष्यते त्यागेन शीलेन गुणेन कर्मणा ।।"


(चाणक्य-नीतिः--5.2)


अर्थः---जैसे सोने के खरे और खोटेपन को जानने के लिए उसकी घिसने, काटने, तपाने और कूटने से परीक्षा की जाती है, वैसे ही मनुष्य की परीक्षा भी दान, शील, गुण और आचरण से होती है ।
अर्थात मनुष्य वह है जो दानी है, शील से सम्पन्न है, सभी शुभ गुणों से सुभूषित है तथा जिसके आचरण श्रेष्ठ है ।


महर्षि दयानन्द ने "मनुष्य" की परिभाषा इस प्रकार से की हैः---


"मनुष्य उसी को कहना कि जो मननशील होकर स्वात्मवत् अन्यों के सुख-दुःख और हानि-लाभ को समझें, अन्यायकारी-बलवान् से भी न डरे और धर्मात्मा निर्बल से भी डरता रहे । इतना ही नहीं, किन्तु अपने सर्वसामर्थ्य से धर्मात्माओँ की चाहे वे वे महा अनाथ, निर्बल और गुणरहित क्यों न हों, उनकी रक्षा, उन्नति, प्रियाचरण और अधर्मी चाहे चक्रवर्ती, सनाथ, महाबलवान् और गुणवान् भी हों तथापि उनका नाश, अवनति और अप्रियाचरण सदा किया करे अर्थात् जहाँ तक हो सके, वहाँ तक अन्यायकारियों के बल की हानि और न्यायकारियों के बल की उन्नति सर्वथा किया करे । इस काम में चाहे उसको कितना ही दारुण दुःख प्राप्त हो, चाहे प्राण भी भले ही जाएँ, परन्तु इस मनुष्यपन रूप धर्म से पृथक् कभी न होवें ।


(स्वमन्तव्यामन्तव्यप्रकाश)  


samelan, marriage buero for all hindu cast, love marigge , intercast marriage , arranged marriage


rajistertion call-9977987777, 9977957777, 9977967777or rajisterd free aryavivha.com/aryavivha app    


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।