महान देव की भक्ति

 



 


 


 


महान देव की भक्ति



येन द्यौरुग्रा पृथिवी च दृढा येन स्व स्तभितं येन नाकः ।
योऽअन्तरिक्षे रजसो विमानः कस्मै देवाय हविषा विधेम ।। ५ ।।
―(यजु० अ० ३२ ।मं० ६)



अर्थ:-(येन) जिस परमात्मा ने (उग्रा) उग्र-प्रकाशयुक्त (द्यौः) सूर्य आदि को (च) और (पृथिवी) पृथिवीलोक को (दृढा) दृढ़ किया है,(येन) जिस परमात्मा ने (स्वः) सांसारिक सुख को (स्तभितम्) थाम रखा है और (येन) जिस देवाधिदेव ने (नाकः) दुःखरहित मोक्ष को धारण किया है,(य:) जो परमेश्वर (अन्तरिक्षे) आकाश में (रजसः) अनेक लोक-लोकान्तरों को (विमानः) विषेश रीति से निर्माण करता और आकाश में भ्रमण कराता है (कस्मै) उस आनन्ददायक (देवाय) कामना करने योग्य प्रभु के लिए (हविषा) अपने सब सामर्थ्य से (विधेम) विषेश भक्ति करें।



येन द्यौः उग्रा



परमात्मा ने उग्र स्वभाव वाले सूर्यादि को धारण किया हुआ है।द्युलोक उग्र है।क्यों?हमारे सूर्य,चन्द्रमा,शुक्र,मंगल,बुध,बृहस्पति और शनि को मिलाकर एक सौरमण्डल बनता है।इनकी उग्रता का का पता लगाना हो तो यूं समझिए कि सूर्य पृथिवी से साढ़े तेरह लाख गुणा बड़ा है।पृथिवी का भार ६ के आगे २१ बिन्दू रखे जाएँ (६०००००००००००००००००००००) इतने टन बनता है।हमारी संख्या महाशंख पर समाप्त हो जाती है।मानव-बुद्धि पृथिवी के भार की गणना करने में असमर्थ है,फिर सूर्य के भार की तो कल्पना भी असम्भव है।यह समस्त सौरमण्डल हमारी पृथिवी से करोड़ों गुणा बड़ा एवं भारी है।इस सौरमण्डल की भाँति और भी बहुत से सौर-मण्डल हैं।इस सूर्य की भाँति और भी अनेक सूर्य हैं।
वेद में कहा है:-



सप्तदिशो नानासूर्याः।-(ऋ० ९/११४/३)


 



दिग्दिगान्तरों में अनेक सूर्य हैं।
वैज्ञानिक अब तक दो अरब सौरमण्डलों का पता लगा चुके हैं।वैज्ञानिकों की बनाई हुई दृढ़-से-दृढ़ और शक्तिशाली दूरबीन जिस दूर-से-दूर के नक्षत्र को देख सकी है वहाँ से प्रकाश के पृथिवी पर पहुँचने में एक सहस्र वर्ष लगते हैं और कुछ सूर्य तो पृथिवी से इतनी दूर हैं कि जिनका प्रकाश सृष्टि के आरम्भ से लेकर अब तक पृथिवी पर नहीं पहुँचा है।स्मरण रहे कि प्रकाश की गति एक लाख छियासी हजार मील प्रति सैकिण्ड है।क्या इस प्रकार के ग्रह-नक्षत्र,तारे और सितारे उग्र नहीं हैं?



वैज्ञानिकों के अनुसार हमारी पृथिवी के कुछ ग्रहों की दूरी इस प्रकार है-



पृथिवी से चन्द्रमा कम से कम  २,२१,६१० मील दूर है।
पृथिवी से शुक्र कम से कम  २,३२,७१,००० मील दूर है।
पृथिवी से मंगल कम से कम २,३९,1६,००० मील दूर है।
पृथिवी से बुध कम से कम  ४,८०,२०,००० मील दूर है।
पृथिवी से सूर्य कम से कम ९,१४,०६,००० मील दूर है।
पृथिवी से बृहस्पति कम से कम  ३६,५८,१६,००० मील दूर है।
पृथिवी से शनि कम से कम  ७४,२६,४६,००० मील दूर है।
पृथिवी से यूरेनस कम से कम १,६०,६१,८३,००० मील दूर है।
पृथिवी से नेपच्यून कम से कम  २,६७,४३,५७,००० मील दूर है।



यदि हम सौ मील प्रति घण्टा की गति से चलने वाली ट्रेन द्वारा बिना रुके लगातार यात्रा करते रहें तो चन्द्रमा तक पहुँचने में ९० दिन,शुक्र में पहुँचने में २७ वर्ष,मंगल में पहुँचने में ३६ वर्ष,बुध तक जाने में ५४ वर्ष,सूर्य में जाने के लिए १०५ वर्ष,बृहस्पति की यात्रा करने में ४१७ वर्ष,शनि तक पहुँचने में ५५८ वर्ष,यूरेनस की यात्रा में १८३३ वर्ष और नेपच्यून तक पहुँचने में ३२१३ वर्ष लगेंगे।यह तो एक सौरमण्डल की बात हुई।पता नहीं ऐसे कितने सौरमण्डल हैं।इन सौरमण्डलों की विशालता पर विचार करते हुए बुद्धि आश्चर्यचकित हो जाती है।
इन सौरमण्डलों की विशालता और व्यापकता के सम्बन्ध में भी श्री जगदीशचन्द्रजी वसु ने ठीक ही कहा था:-



"हो सकता है मनुष्य समुद्र के बिन्दुओं की गणना कर ले,यह भी सम्भव है कि वह रेगिस्तान (मरुष्थल) के कणों की भी गणना कर डाले परन्तु द्युलोक के ग्रह और नक्षत्र ,चाँद और सितारों तथा सूर्यों की गणना करना असम्भव है।"



रात्रि के समय हमें आकाश में जो ज्योति का एक पुन्ज-सा फैला हुआ दिखाई देता है,उसे आकाश-गंगा कहते हैं।इसमें ४० अरब ऐसे सूर्य हैं जिनका अपना अलग-अलग मण्डल है।अब तक ऐसी दो करोड़ आकाशगंगाओं का पता लगाया जा चुका है।पता नहीं ऐसी और कितनी आकाशगंगाएँ हैं।एक-एक आकाशगंगा में अरबों सूर्य,एक-एक सूर्य की परिधि में घूमने वाले कई ग्रह-उपग्रह और आकाश-गंगा के अतिरिक्त अनेक नक्षत्र।महान् देव की इस महान् रचना को देखकर मनुष्य आश्चर्यचकित हो जाता है।



इन उग्र और तेजस्वी पिण्डों को किसने सँभाला हुआ है?
इन सबका धारण करने वाला अद्वितीय ईश्वर ही है।इनमें उसी की ज्योति और प्रकाश है।
उपनिषद के ऋषि ने ठीक ही कहा है-



न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं,
नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः ।
तमेव भान्तमनु भाति सर्वम्,
तस्य भासा सर्वमिदं विभाति ।।-(कठ० ५/१५)
उस प्रभु के प्रकाश के बिना न सूर्य चमक सकता है और न चन्द्रमा प्रकाशित हो सकता है,न बिजली ही चमक सकती है,फिर इस साधारण अग्नि की तो बात ही क्या है ? उसी के तेज से,उसी के प्रकाश से,उसी की ज्योति से,उसी की आभा से ये यह सारा संसार चमक रहा है,ज्योतिर्मान् हो रहा है।
उसी के प्रकाशित होने पर यह सारा जगत् प्रकाशित होता है।



ईश्वर की सत्ता को न मानने वाले भौतिकवादी कहते हैं कि यह सब चांस है,आकस्मिक है,अपने-आप हो रहा है।ऐसे लोगों की बुद्धि पर हँसी आती है और आश्चर्य भी होता है।एक छोटी-सी सुई बनाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति किसी लुहार की आवश्यकता अनुभव करता है,एक साधारण से दीपक को जलाने के लिए किसी व्यक्ति की आवश्यकता प्रत्येक को अनुभव होती है,एक छोटे से घर को सुव्यवस्थित रखने के लिए किसी कुशल गृहिणी की आवश्यकता प्रत्येक व्यक्ति अनुभव करता है,परन्तु इस इतने विशाल और सुव्यवस्थित ब्रह्माण्ड की रचना के लिए किसी चेतन शक्ति को न माना जाए इससे अधिक विडम्बना और क्या हो सकती है?यह बुद्धिवाद का दिवाला नहीं तो और क्या है?



अधिक से अधिक १३० गज लम्बे और १०० गज चौड़े फुटबाल के मैदान में दोनों और के २२ खिलाड़ी एकत्र होते हैं।वे सभी अपनी और से पूर्ण प्रयत्न करते हैं कि फुटबाल आउट न हो जाए,परन्तु फिर भी वह आउट हो जाती है,खेल के क्षेत्र से बाहर चली जाती है,परन्तु इस अनन्त आकाश में वह परमात्मा अकेला होते हुए भी एक नहीं अपितु अरबों और खरबों गोल-गोल बालों को इस प्रकार व्यवस्था में चलाता है कि कोई भी बाल अपने स्थान से इधर-उधर नहीं होने पाती।समस्त ग्रह-उपग्रह और नक्षत्र नियमित गति और अपने-अपने क्षेत्र में सुव्यवस्थित रुप से चलते हैं।ये सूर्य,चन्द्र और नक्षत्र अपनी परिधि और गति में अकस्मात् नहीं चल रहे अपितु इन सबको परमात्मा चला रहा है 


















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