आत्माएं सभी एक समान हैं। सबको सुख चाहिए। इसलिए दूसरों पर अन्याय न करें।

 



 


 


 


 


     आत्माएं सभी एक समान हैं। सबको सुख चाहिए। इसलिए दूसरों पर अन्याय न करें।
         सबके अंदर इच्छाएं हैं। सब व्यक्ति अपनी अपनी इच्छा पूरी करना चाहते हैं। सभी सुख से जीना चाहते हैं। इसलिए हम सब का यह कर्तव्य होता है कि हम दूसरों पर अनावश्यक दबाव डालकर उन्हें परेशान न करें। जैसे हम अपनी इच्छा के अनुसार जीना चाहते हैं, हम अपने सुखों का ध्यान रखते हैं। ऐसे ही दूसरे लोग भी अपनी इच्छा के अनुसार जीना चाहते हैं, हमें उनके सुखों का भी ध्यान रखना चाहिए। 
      सांसारिक व्यवहार चलाने के लिए भले ही हम अपनी अपनी योग्यता के अनुसार कार्य करते हैं। कोई व्यक्ति हम से अधिक योग्य है, हमें उसके अनुशासन में रहना पड़ता है। कोई व्यक्ति हम से कम योग्य है, उसे हमारे अनुशासन में चलना पड़ता है। 
मान लीजिये, हम अपने अधिकारियों के अधीन 8 घंटे की नौकरी करते हैं, तो वे हमसे 8 घंटा ही काम लेवें। ऐसा न हो कि वे हमसे 12 घंटे काम लेवें। और हमें छुट्टी के बाद घर पर जाकर भी कार्यालय का ही काम करना पड़े। इससे तो हमारे व्यक्तिगत जीवन में बाधा पड़ती है। हम परिवार के साथ मिलकर समय नहीं बिता पाते। उनके साथ बैठकर कुछ आनंद की बातें नहीं कर पाते। कोई मनोरंजन नहीं कर पाते। एक दूसरे का सुख दुख नहीं बाँट पाते। यह हमारे साथ अन्याय और हमारा शोषण है। आजकल प्राइवेट कंपनियों में बहुत जगहों पर ऐसा देखा जाता है।
        तो सांसारिक व्यवहार करते समय इस बात का अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि *जैसे हम यह नहीं चाहते, कि हमारे बड़े अधिकारी हम पर अन्याय करें, हमारा शोषण करें, हमारी इच्छाओं का विनाश करें। हमारी व्यक्तिगत स्वतंत्रता में बाधक बनें। ऐसे ही हमारे अधीन जो कर्मचारी हैं, हमें भी उनके साथ ऐसा नहीं करना चाहिए।
      यदि सभी अधिकारी लोग इस प्रकार से अपने अधीन कर्मचारियों के सुख-दुख का ध्यान रखेंगे, तो निश्चित रूप से सबका जीवन सुखमय होगा। और यदि अधिकारी लोग अपने अधीनस्थों पर अत्याचार करेंगे, तो इसका उन्हें भयानक दंड भोगना पड़ेगा। चाहे अब, या इसी जीवन में 10/20 वर्ष के बाद, या अगले जन्म में। इसलिए स्वयं भी आनंद से जीएँ, और दूसरों को भी जीने दें।
       जीवन में कुछ दूसरे लोग भी आपको सुझाव सलाह सम्मति देंगे। दूसरे लोग  आपको जो सुझाव सलाह सम्मति देवें, उसे भी आप अपनी इच्छा के अनुसार माप तोल कर देखें,  कि उनका सुझाव आपकी इच्छा अनुकूल है या नहीं? आपकी बुद्धि सामर्थ्य क्षमता रुचि के अनुकूल है या नहीं? यदि अनुकूल हो, तभी उनका सुझाव मानें, अन्यथा निषेध कर दें।
        अनेक बार कुछ लोग (माता पिता मित्रों सहित) जो स्वयं अपने जीवन में अपनी इच्छाओं को पूरा नहीं कर पाते, वे आपके द्वारा अपनी इच्छाएं पूरी होती देखना चाहते हैं। और वे इस प्रकार के सुझाव आपको देते रहते हैं । जब दूसरे लोग आपको कोई इस प्रकार का सुझाव देवें, तो आप यूं ही उनकी बात न मान लेवें। क्योंकि  आप किसी को प्रसन्न करने के लिए संसार में उत्पन्न नहीं हुए।  आपकी अपनी भी इच्छाएं रुचि संस्कार आदि हैं। आप भी अन्य सब लोगों की तरह स्वतंत्र हैं। जैसे दूसरे लोग अपनी इच्छा व रुचि के अनुसार जी रहे हैं, ऐसे ही आपको भी अपनी स्वतंत्रता इच्छा रुचि और प्रसन्नता से जीने का अधिकार है। ((माता पिता और गुरुजन विशेष रूप से इस बात का ध्यान रखें कि वे अपनी इच्छाएं जबरदस्ती बच्चों पर न थोपें।)
      हाँ, इतनी सावधानी अवश्य रखें कि अपनी स्वतंत्रता से जीते हुए दूसरों की हानि न करें। किसी दूसरे पर अन्याय अत्याचार या उसका शोषण न करें। ऐसा करने से आपका और दूसरों का जीवन सुखमय होगा।
 - स्वामी विवेकानंद परिव्राजक 















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