वेद वाणी

संगठन संघटन का महान् आधार


विवे वचसा पतिं दिव एको विभूरतिथिर्जनानाम्।


स पर्यो नूतनमाविवासत् तं वर्तनिरनु वावृत एकमित् पर। -अथर्व० ७। २१ ।


ऋषिः-ब्रह्मा॥ देवता-आत्मा ॥ छन्द:-जगती॥


SS विनय-आओ! तुम सब आओ, हे मनुष्यो! तुम सब इकट्ठे होकर आओ और एक वाणी से उस ‘दिवः पति' के स्तोत्र गाओ। वही हम सबको इकट्ठा कर सकता है। वही एक सूत्र की तरह हम सबको जोड़नेवाला है, क्योंकि वह एक विभु, वह एक सर्वव्यापक, हम सब मनुष्यों में सततरूप से व्याप्त है। हम सब जनों में अतिथि है। हम सभी का समान रूप से वह मेहमान बना हुआ है, अतः हम सबके उस एक पूज्य द्वारा, हम सबके उस एक उपास्य द्वारा, हम सब मनुष्य परस्पर जुड़ सकते हैं और असल में जुड़े हुए हैं भीवह एकरस पुराण है और यह बदलता हुआ संसार नित्य नया होता रहता है, पर वह पुराण इस नित्य नये संसार का नित्य नये रूप से सेवन कर रहा है, इसमें नित्य नये रूप से व्यापा हुआ हैइसलिए उसे प्राप्त करना चाहता हुआ यह संसार अपने-अपने ढंग से ही उसकी ओर जा सकता है, अतः यह सच है कि जो मार्ग हमें उसकी ओर ले जाता है वह निःसन्देह हम सबको केवल उस एक की ओर ले-जाता है, परन्तु वह हमें विविध प्रकार से प्रत्येक व्यक्ति के अनुसार उसके अपने-अपने निराले प्रकार से-ले-जाता है। हम सब यद्यपि अपने-अपने ढंग से उस एक उपास्य देव की उपासना करेंगे, पर अपनेअपने ढंग से उपासना करते हुए भी हम सभी का उपास्य देव वह एक ही है, अतः आओ, । उस अपने एक देव के नाम पर हम सब-हम सब-के-सब मनुष्य-एक हो जाएँ, मिल |( जाएँ, उस एक प्रभु के झण्डे के नीचे इकट्ठे हो जाएँ और हम सब-के-सब वाणी से उसके । • यश:-गीत गाएँ। 


शब्दार्थ-विश्वे-हे सब लोगो, सब भाइयो! दिवः पतिम प्रकाशपति परमेश्वर के प्रति वचसा-एक वाणी से समेत एकत्र हो जाओ; चूँकि एकः विभूः वह एक ही सर्वव्यापक जनानाम् सब जनों का अतिथि:=अतिथि बना हआ है। सः पूर्व्यः वह पुराना नूतनम् इसमें नये [संसार] को आविवासत् सेवन कर रहा है, व्याप्त कर रहा है, अतः तम् उसके प्रति वर्तनिःजो मार्ग अनुवावृते जाता है, वह एकं इत-उस एक के प्रति ही किन्तु पुरु-बहुत प्रकार से, नाना प्रकार से जाता है। 


 


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