वेद वाणी

वाणी की पवित्रता


सहस्रधारे वितते पवित्रे आ वाचे पुनन्ति कवयो मनीषिणः।


रुद्रास एषामिषिरासो अद्रुहः स्पशः स्वंचः सुदृशो नृचक्षसः॥ -ऋ० ९ । ७३ । ७


__ ऋषिः-पवित्र आङ्गिरसः॥ देवता-पवमानः सोमः॥ छन्द:-जगती॥


जगती॥ विनय-ऊपर धुलोक से सहस्र धाराओं में सोम की वर्षा हो रही है। जहाँ केवल + शुद्ध धर्म की-अशुक्ल, अकृष्ण धर्म की वर्षा होती है उस धर्ममेघ समाधि की अवस्था म आने पर ध्यानी लोग इसे अनुभव भी करते हैं। यह शिर के ऊर्ध्वभाग में अनुभूत होती है जहाँ कि हठयोगी लोग ‘सहस्रारकमल' को देखते हैं। वहाँ अनन्त, अपार ज्ञानसमुद्र है 'सर्वावरणमलापेत'' शुद्ध ज्ञान का समुद्र है। उसमें क्रान्तदर्शी और क्रान्तकर्मा ज्ञानी महापुरुष अपनी वाणी को पवित्र करते हैं, उसमें गोता देकर सर्वथा शुद्ध हुई वाणी को बोलते हैं। के तब उनकी यह वाणी बड़ी चमत्कारिणी शक्ति रखती है। वहाँ से निकली वाणी द्वारा जो आज्ञा की जाती है वह अमोघ होती है। इसीलिए हम देखते हैं कि महात्मा दिव्य पुरुषों की वाणी व अनुचिन्तन (माध्यमिक वाणी) विशेष प्रभाव रखती है। वे अपने भाषण व चिन्तन से अपने दूत का, अपने वशवर्ती नौकर का, काम ले-सकते हैं। दूर-दूर के विषय र में वे जो सोचते हैं या बोलते हैं, वह वहाँ पूरा हो जाता है, पर यह तो दूर की बात है। क्या हम अपेक्षया उन्नत श्रेष्ठ पुरुषों को नित्य नहीं देखते कि उनका भाषण व विचार दूर |तक प्रभाव पहुँचानेवाला होता है, कभी किसी को भी हानि न पहुँचानेवाला होता है, उत्तम व्यवहार-युक्त होता है, उत्तम दिव्य दूरदृष्टि से देखकर बोला हुआ होता है और मनुष्य को ठीक-ठीक देखकर, पहचानकर बोला हुआ होता है? यदि किन्हीं के भाषण व विचार में - ये उक्त गुण दिखलाई देते हैं तो यह इस बात का लक्षण है कि उनकी वाणी पवित्र हो रही है, पवित्रताकारक सोमधारा का स्पर्श प्राप्त कर रही है, 'वितत सहस्रधार पवित्र' की ओर बढ़ रही है।


शब्दार्थ-कवयः मनीषिणः=क्रान्तदर्शी, क्रान्तकर्मा ज्ञानी लोग वाचम्= अपनी वाणी को सहस्त्रधारे वितते पवित्रे हज़ारों धाराओंवाले विस्तृत पवित्रताकारक स्रोत में [सोमस्रोत में] आ पुनन्ति पूरी तरह पवित्र करते हैं, अतः एषाम् इन मनीषियों के रुद्रासः प्राण प्राणरूप माध्यमिक वाणियाँ इषिरासः दूर तक पहुँचानेवाले, बड़े प्रभावशाली अद्रुहः किन्त कभी किसी का द्रोह व घात न करनेवाले स्वंच: उत्तम व्यवहार करनेवाले सदश: उत्तम दिव्य दृष्टि-वाले और नृचक्षसः मनुष्यों को ठीक-ठीक पहचान लेनेवाले स्पश: दूत की भाँति हो जाते हैं।


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।