स्वामी रामेश्वरानंद जी महाराज (गुरुकुल घरौंडा)

 


 



 


स्वामी रामेश्वरानंद जी महाराज (गुरुकुल घरौंडा)


तेरी शान हरजां समाई हूई है, ये दुनिया तुम्हारी बनाई हूई है। शशि में रवि और रवि में भी तुम हो,ये सब चमक तेरी फैलाई हूई है। यहां तू वहां तू इधर तू उधर तू,हर घट पट में ज्योति जगाई हूई है। निकट तू अलग तू तेरा मैं मेरा तू,मगर फिर भी क्यों ना सुनाई हूई है। कहें "भीष्म" दर्शन करेगें कभी तो, यही लग्न दिल से लगाई हूई है।।


स्वामी रामेश्वरानंद जी आर्य समाज के उज्जवल रत्नों में से हूए हैं। ये ओजस्वी सन्यासी, विद्वान एवं एक निडर वक्ता थे। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के जिला बुलंदशहर के गांव कुबेर में सामान्य कृषक परिवार में सन् 1890 में हूआ। ये छ: वर्ष की आयु में माता व 10/12 वर्ष की आयु में पितृ स्नेह से वियुक्त हो गए। अपनी दादी के पास ग्रामीण पाठशाला में आपने कक्षा चार उत्तीर्ण की।


मात पिता का स्नेह न मिलने के कारण बचपन में ही इनके मन में वैराग्य भाव उत्पन्न हो गए। ओर 14/15 वर्ष की आयु में ही गुरु की खोज में निकल पड़े।


शिक्षा व सन्यास 


आप माला भस्मी रुद्राक्षादि को धारण करते जप व पुजा पाठ में विश्वास रखते थे। आप हापुड़ होते हूए काशी पहूंचे वहां पर आपने स्वामी कृष्णानंद जी गुजराती, दसनामी स्वामी से परिचय हूआ ओर सन्यास दीक्षा ली ओर स्वामी रामेश्वरानंद कहलाए।


आर्य समाज में प्रवेश


प्रांरभ में स्वामी जी पौराणिक विचारधारा के अनुयायी थे। किंतु जब वो मथुरा से दिल्ली आए तो आर्य समाज के प्रसिद्ध क्रांतिकारी सन्यासी स्वामी भीष्म जी के सम्पर्क में आकर उनके विचारो से प्रभावित होकर आर्य समाजी बन गए। स्वामी भीष्म जी के पास चार वर्ष रहने के बाद पुन:अध्ययन करने के लिए साधु आश्रम अलीगढ़, गुरुकुल सिकंदराबाद, गुरुकुल ज्वालापुर, खुर्जा, लाहौर आदि में पढ़ते रहे। काशी में रामेश्वरदास जी निरंकारी, स्वामी शुद्धबौद्ध तीर्थ ज्वालापुर वालों से संस्कृत व्याकरण पढ़ा तथा पं0 तिवारी, पं0 दृढ़राज शास्त्री से व्याकरणादि व अन्य विद्वानों से पढ़कर पूर्ण विद्वान बने।


स्वतंत्रता संग्राम में 


उस समय आजादी के लिए लड़ाई चरम सीमा पर थी। ओर इसमे आर्य समाज की मुख्य भूमिका थी। स्वामी जी ने महात्मा गांधी द्वारा संचालित सभी आंदोलनो में भाग लिया। असहयोग आंदोलन करने के बाद स्वामी जी को देहरादून जेल में डाल दिया। जेल में अंग्रेज अधिकारियों ने उन पर अमानवीय व पाशविक अत्याचार किये।


1935 में गांधी जी द्वारा चलाए नमक सत्याग्रह में स्वामी ने बढ़ चढ़कर भाग लिया। ""नमक कानून तोड़ दिया"" ""अंग्रेज का सिर फोड़ दिया"" नारे का गांव गांव में प्रचार किया। 1942 के असहयोग आंदोलन में भी स्वामी जी ने बढ़ चढ़कर भाग लिया ओर अंग्रेजी सरकार का विरोध किया।


गुरुकुल स्थापना


पूज्य गुरु स्वामी भीष्म जी की प्रेरणा से स्वामी जी ने धर्मवीर शास्त्री जी के सहयोग से 17 अप्रैल 1939को गुरुकुल घरौंडा की स्थापना की। आज यह गुरुकुल भव्य ढंग से चल रहा है।


हैदराबाद सत्याग्रह


1939 में हैदराबाद के निजाम द्वारा हिंदुवों पर किये अत्याचार के विरुद्ध स्वामी जी ने सत्याग्रहियों के साथ कूच किया। तथा नवाब ने उन्हें विभिन्न जेलो में बंदी बनाकर रखा। 1947 भारत पाक विभाजन के समय भी स्वामी जी ने अपनी बंदुक के दम पर हजारों हिंदु अबलाओं की जान बचाई।


हिंदी सत्याग्रह


सन् 1957 पंजाब में हिंदी भाषा पर हूए सत्याग्रह में स्वामी जी ने अकालियों व पंजाब सरकार के विरोध में सफलता पूर्वक सत्याग्रह का संचालन किया। सारे संयुक्त पंजाब में भ्रमण करने के बाद जत्थो का चंडीगढ़ में नायकत्व किया। पुलिस एक बार स्वामी जी को पशु के समान जीप के पीछे बांधकर घसीटते हूए ले गई। इसी प्रकार मास्टर तारासिंह की पंजाबी सूबा की मांग का विरोध किया ओर उनकी मांग को असफल करवाया। इसके बाद 1962 के लोकसभाई चुनावों में करनाल लोकसभा से सांसद चुनकर संसद पहूंचे। ओर सर्वप्रथम अपने साथ 33अन्य सांसदो को संस्कृत भाषा में शपथ दिलवाई। ये स्वामी जी का ही संघर्ष है की आज संसद की कार्यवाही अंग्रेजी के साथ साथ हिंदी में ही चल रही है। इसी संदर्भ में स्वामी जी ने संसद में हवन भी किया।


गोरक्षा आंदोलन


1966 में गोरक्षा सत्याग्रह चला ओर स्वामी जी ने लाखों सत्याग्रहियों को ललकारते हूए कहा "जाओ घेर लो पार्लियामेंट मत चलने दो कार्यवाही" बहुत से व्यक्ति शहीद हूए ओर पुलिस की गोली से स्वामी जी बाल बाल बचे।


स्वामी जी ने अन्य मतावलंबियों से भारत के बहुत से नगरों में अनेक शास्त्रार्थ किये ओर अपने ज्ञान गंभीरता का लोहा जमाया। स्वामी जी यौगिक क्रियाओं के सिद्धहस्त थे। योग बल के द्वारा ही उन्होने आजादी के पहले व बाद में पुलिस के अत्याचार से अपने जीवन की रक्षा की।


स्वामी जी के उत्तम श्रेणी के ग्रंथो की रचना " महर्षि दयानंद ओर राजनीति" , संध्या भाष्यम्, नमस्ते प्रदीप आदि। वास्तव में स्वामी जी आर्य समाज के गौरव,राषट्रभक्त, विद्वान, सेनानी , तपस्वी, कर्मठ सन्यासी थे। 8 मई 1990 को स्वामी जी सौ वर्ष की आयु में दीवगंत हूए। ऐसी महान आत्मा को शत शत प्रणाम और परमात्मा के प्रार्थना निवेदन है की ऐसे ऐसे संत भारत भूमी में आते रहे।।


लेखक :- स्वामी रत्न देव सरस्वती


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