ऋषि के जीवन से
भागलपुर में उन दिनों गंगा किनारे एक मेला लगता था जिसमें लोग पंडो को अपनी लड़कियां दान कर दिया करते थे । संयोगवश स्वामी दयानंद जी मुंगेर से चलकर भागलपुर पहुंचे । स्वामी जी के आने से पंडो में हलचल मच गई । एक दिन स्वामी जी सायं समय टहलने गए टहलते टहलते मेले में चल दिए । मेले में लोगो द्वारा पंडो को लड़कियां दान दे रहे थे । स्वामी जी जब रात तक ना लौटे तो नन्दन महाशय स्वामी जी का भोजन उनकी कुटिया में छोड़कर अपने घर चला गया । प्रातः आया तो देखा भोजन वैसा का वैसा पड़ा है और स्वामी जी गहन मुद्रा में बैठे बड़े व्याकुल थे । जब नन्दन महाशय ने स्वामी जी को विनय की और कारण पूछा तो स्वामी जी ने रात मेले का सारा वृतान्त बताया कि कैसे ये देश इतना अधोगति को चला गया है कि लोग अपनी लड़कियों को दान करने में संकोच नही कर रहे । स्वामी जी बोले इसी शोक और चिंता में बैठे एक तो गंगा पर ही बड़ी रात हो गयी और दूसरा आकार मन इतना व्याकुल था कि भोजन की तरफ ध्यान नही गया । स्वामी जी के ये कथन सुनकर नन्दन महाशय भी बहुत दुःखी हुए और उनके नेत्रों से अश्रुधारा बह निकली ।
स्वामी जी ने अगले दिन जोर शोर से खण्डन शुरू किया और स्थान स्थान जाकर लोगो की आंखे खोलने लगे । स्वामी जी के प्रचार का धीरे धीरे इतना प्रभाव हो गया कि लोग स्वयं शामियाने आदि का प्रबंध करके स्वामी जी का इंतज़ार करते स्वामी जी के व्याख्यान में एक तरह से मेला लग जाता बग्गी पर बग्गियों के झुंड लग जाते ।
स्वामी जी के विचारों का इतना प्रभाव हुआ कि लोगो ने पंडो की मानसकिता पर थू करना शुरू कर दिया ।
सायंकाल बहुत से पादरी और मौलवी स्वामी जी को मिलने आते और धर्मचर्चा करते ।
एक दिन स्वामी जी के पास कुछ पादरी आये और धर्म चर्चा कर रहे थे उस धर्म चर्चा का इतना प्रभाव पड़ा कि एक बंगाली ब्राम्हण जो कुछ साल से ईसाई पादरी बन गया था फूट फूट कर रोने लगा । उसने ये कहा अगर ये उपदेश पहले प्राप्त हो गए होते तो उसके जैसे सैंकड़ो लोग आपने सनातन धर्म का परित्याग क्यों करते ।
......🖊️आर्य सुमित टण्डन
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