प्रोफेसर राममूर्ति नायडू

 



 


 


 


प्रोफेसर राममूर्ति नायडू (अंग्रेजी:Kodi Rammurthy Naidu तेलुगू:కోడి రామ్మూర్తి నాయుడు जन्म:१८८२ - मृत्यु:१९४२) भारत के विश्वविख्यात पहलवान हुए हैं जिन्हें उनकी उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिये ब्रिटिश सरकार ने कलयुगी भीम की उपाधि से अलंकृत किया था। दक्षिण भारत के उत्तरी आन्ध्र प्रदेश में जन्मे इस महाबली ने एक समय में पूरे विश्व में तहलका मचा दिया था। स्वयं ब्रिटिश सम्राट जार्ज पंचम व महारानी मैरी ने लन्दन स्थित बकिंघम पैलेस में आमन्त्रित कर सम्मानित किया और इण्डियन हरकुलिस व इण्डियन सैण्डोज जैसे उपनाम प्रदान किये। उनके शारीरिक बल के करतब देखकर सामान्य जन से लेकर शासक वर्ग तक सभी दाँतों तले उँगली दबाने को विवश हो जाया करते थे। प्रो॰ साहब ने व्यायाम की जो नयी पद्धति विकसित की उसे आज भी भारतीय मल्लयुद्ध के क्षेत्र में प्रो॰ राममूर्ति की विधि] के नाम से जाना जाता है जिसमें दण्ड-बैठक के दैनन्दिन अभ्यास से शरीर को अत्यधिक बलशाली बनाया जाता है।
दक्षिण भारत के उत्तरी आन्ध्र प्रदेश में श्रीकाकुलम जिले के वीराघट्टम गाँव में वैंकन्ना नायडू के घर अप्रैल १८८२ को जन्मे प्रोफेसर राममूर्ति पहलवान का वास्तविक नाम कोडी राममूर्तिओ नायडू था। बचपन में माँ का निधन हो जाने से बालक निरंकुश हो गया और हम उम्र साथियों की पिटायी करके उन पर अपना रौब जताने लगा। पिता ने पिटायी लगायी तो घर छोडकर जंगल में जा कर छुप गया और एक सप्ताह बाद लौटा तो एक चीते के बच्चे को कन्धे पर उठाये हुए। राममूर्ति दिन भर चीते के बच्चे को कन्धे पर उठाये पूरे वीराघट्टम गाँव में घूमा करता और सारे गाँव वाले डर के मारे अपने-अपने घरों में दुबके रहते। इस तरह उसने पूरे गाँव की नाक में दम कर रखा था। आखिरकार उसके पिता ने युक्ति से काम लिया और उसे अपने छोटे भाई नारायण स्वामी के पास विजयनगर भेज दिया जो उन दिनों वहाँ पुलिस इन्स्पेक्टर थे।


राममूर्ति के चाचा पुलिस में थे जहाँ प्रत्येक सिपाही को शारीरिक प्रशिक्षण दिया जाता था अत: उसका वहाँ मन लग गया। अब तो वह परिश्रम से पढ़ाई भी करता और शारीरिक व्यायाम भी। उसको बाडी बिल्डिंग में बड़ा मजा आता था। नारायणस्वामी ने उसको फिटनेस सेण्टर में दाखिल करा दिया जहाँ उसने जी तोड़ अभ्यास किया और महाबली का सपना लिये अपने गाँव लौटा। लेकिन गाँव के माहौल में उसे प्रसिद्धि के बजाय व्यंग्य वाणों का सामना करना पड़ा जिससे उत्तेजित होकर वह गाँव के पट्ठों को पटक-पटक कर मारने लगा। आखिरकार परेशान होकर पिता वैंकन्ना उसे फिर अपने भाई के पास विजयनगर छोड़ आये। चाचा ने भतीजे की कुश्ती में रुचि को देखते हुए उसे मद्रास भेज दिया जहाँ पूरे एक साल रहकर पहलवानी का गहन प्रशिक्षण प्राप्त कर विजयनगर वापस लौट आया। नारायणस्वामी ने उसे एक विद्यालय में शारीरिक प्रशिक्षक (फिजिकल इन्स्ट्रक्टर) की नौकरी दिला दी।


विजयनगर में नौकरी के अतिरिक्त राममूर्ति ने शारीरिक बल के खुले प्रदर्शन शुरू किये जिनमें जनता की अपार भीड़ जुटा करती थी। एक बार लार्ड मिण्टो विजयनगर आये। राममूर्ति को एक खेल सूझा। उसने उनकी लम्बी चौड़ी मोटर कार का पीछे का हुड कस कर पकड़ लिया और उनके ड्राइवर को कार स्टार्ट करने को कहा। लार्ड मिण्टो के आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब कार एक इन्च भी आगे न बढ़ सकी। इस्से राममूर्ति की ख्याति दूर-दूर तक फैल गयी। अब उसके मन में एक विचार आया-क्यों न शारीरिक बल के प्रदर्शन से जनता का मनोरंजन किया जाये और पैसा भी कमाया जाये। उसके एक मित्र पोट्टी पुन्थूलू ने इस विचार को क्रियान्वित करने में पूरा सहयोग किया। दोनों की मेहनत रंग लायी और प्रोफेसर राममूर्ति की सर्कस कम्पनी ने अपने शो के कई कीर्तिमान स्थापित किये।


बी॰ चन्द्रैया नायडू के परामर्श से उन्होंने सर्कस की कला का उपयोग देशभक्ति का ज्वार जगाने में किया। जहाँ एक ओर वे अपने शारीरिक बल के अद्भुत प्रदर्शन से जनता का ध्यान आकर्षित करते वहाँ दूसरी ओर नौजवानों को दण्ड बैठक की आसान विधि बताकर शारीरिक बल बढ़ाने की सीख भी देते ताकि समय आने पर शत्रु को मुँह तोड़ जबाब दिया जा सके। इस प्रकार उनकी सर्कस कम्पनी ने पूरे हिन्दुस्तान का भ्रमण किया और स्थान-स्थान पर युवाओं को देशभक्ति का पाठ पढाया। इलाहाबाद के कांग्रेस अधिवेशन में महामना मदनमोहन मालवीय ने उन्हें अपने शारीरिक बल का प्रदर्शन करने के लिये आमन्त्रित किया। इलाहाबाद में जो आश्चर्यजनक प्रदर्शन उन्होंने किये उनसे उनकी ख्याति देश की सीमाओं को पार कर विदेश में जा पहुँची। मालवीय जी ने उन्हें इसके लिये प्रेरित किया और साधन भी उपलब्ध कराये।


सबसे पहले उन्होंने लन्दन जाकर बकिंघम पैलेस में किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी के समक्ष प्रदर्शन किया। उनका आश्चर्यजनक प्रदर्शन देख ब्रिटेन के राजा और रानी इतने अभिभूत हुए कि उन्हें इण्डियन हरकुलिस और इण्डियन सैण्डोज जैसे विशेषण प्रदान किये। जब उन्होंने जार्ज पंचम के सामने अंग्रेजी में इन दोनों विशेषणों के साथ-साथ भारतीय मल्ल विद्या के पौरोणिक प्रतीक भीम का तुलनात्मक विवरण पेश किया तो किंग जॉर्ज को अपनी भूल का अहसास हुआ और उसने खड़े होकर माफी माँगी। इतना ही नहीं, ब्रिटिश सम्राट ने सरकारी आदेश पारित कर प्रोफेसर राममूर्ति के लिये कलियुगी भीम की उपाधि का सार्वजनिक ऐलान किया और इंग्लैण्ड में पूरे राजकीय सम्मान के साथ उन्हें यह उपाधि दी गयी। इसके पश्चात उन्हें कई देशों से बुलावा आया और वे वहाँ खुशी-खुशी गये।


फ्रांस, जर्मनी और जापान में भारतीय शक्ति का लोहा मनवा कर प्रोफेसर साहब स्पेन गये। स्पेन की बुल फाइट देखने के लिये उन्हें आमन्त्रित किया गया। बुल फाइट देखकर वे एकायक क्रोधित हो गये और उन्होंने माइक से घोषणा की कि एक वेजुबान बैल को भालों से छेदकर मार डालने में कौन सी बहादुरी है? यदि आप में से किसी स्पेन वासी में साहस और शक्ति है तो निहत्थे रिंग में उतर कर उसे परास्त करके दिखाइये। यदि आप में से कोई यह नहीं कर सकता तो मैं यह कौतुक दिखाने को प्रस्तुत हूँ। उन्होंने केवन डींग ही नहीं मारी अपितु जो कहा वह करके भी दिखाया। लोगों की आँखें फटी की फटी रह गयीं जब राममूर्ति अपना काला चोंगा पहनकर निहत्थे रिंग में उतरे और खूँख्वार साँड़ के सींग पकड़ कर अपनी बलिष्ठ भुजाओं से उस पर काबू कर लिया और मैदान से बाहर भगाकर सबको आश्चर्यचकित कर दिया। ऐसे बलवान व्यक्ति थे राममूर्ति पहलवान!


आप पूर्णत: शाकाहारी थे। एक बार आपको इंग्लैंड में जहर दे दिया गया। तो आपने दस हज़ार दंड लगाकार इतना पसीना निकाला की जहर निष्प्रभावी हो गया। 


भारतवर्ष के इस अभिनव कलियुगी भीम प्रोफेसर राममूर्ति की एक विशालकाय मूर्ति विशाखापत्तनम के बीच रोड पर स्थापित है। दूसरी कांस्य प्रतिमा उनके पैतृक जिले श्रीकाकुलम में लगी हुई है।


प्रेषक-डॉ ब्रजेश गौतम





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