वेद विचार

ओ३म्


 


 


 


 


 


 



"स नो बन्धुर्जनिता स विधाता धामानि वेद भुवनानि विश्वा।
यत्र देवा अमृतमानशाना स्तृतीये धामन्नध्यैरयन्त ॥७॥
    – यजुर्वेद ३२.१०


मंत्रार्थ – वह परमात्मा हमारा भाई और सम्बन्धी के समान सहायक है, सकल जगत का उत्पादक है, वही सब कामों को पूर्ण करने वाला है। वह समस्त लोक-लोकान्तरों को, स्थान-स्थान को जानता है। यह वही परमात्मा है जिसके आश्रय में योगीजन मोक्ष को प्राप्त करते हुए, मोक्षानन्द का सेवन करते हुए तीसरे धाम अर्थात परब्रह्म परमात्मा के आश्रय से प्राप्त मोक्षानन्द में स्वेच्छापूर्वक विचरण करते हैं। उसी परमात्मा की हम भक्ति करते हैं।


           पूज्यपाद श्री स्वामी सत्यप्रकाशजी पूर्वी अफ्रीका की वेद - प्रचार यात्रा पर गए । एक दिन एक पादरी ने आकर कुछ धर्मवार्ता आरम्भ की । स्वामीजी ने कहा कि जो बातें आपमें और हममें एक है उनका निर्णय करके उनको अपनाएँ और जो आपको अथवा हमें मान्य न हों , उनको छोड़ दें । इसी में मानवजाति का हित है । पादरी ने कहा ठीक है ।


स्वामीजी ने कहा ---- " हमारा सिद्धान्त यह है कि ईश्वर एक है । "


पादरी महोदय ने कहा ---- " हम भी इससे सहमत हैं । " तब स्वामीजी ने कहा ----- " इसे कागज पर लिख लो ।"
फिर स्वामीजी ने कहा ----- " मैं , आप व हम सब लोग उसी एक ईश्वर की सन्तान हैं । वह हमारा पिता है ।"


श्री पादरी बोले , --- " ठीक है ।" 


श्री स्वामीजी महाराज ने कहा ---- " इसे भी कागज पर लिख दो ।"
श्री पादरीजी ने लिख दिया । 
फिर स्वामीजी महाराज ने कहा ---- 
" जब हम एक प्रभु की सन्तानें हैं तो नोट करो , उसका कोई इकलौता पुत्र नहीं हैं, यह एक मिथ्या कल्पना हैं ।"


पादरी महाशय चुप हो गए ।


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