वैदिक विचार

 


 



 


 


 


जीवन को पूरी ईमानदारी, बुद्धिमत्ता और मेहनत से जीएँ, आप अवश्य जीतेंगे
         कभी कभी आपने ऐसा सुना पढ़ा  होगा, कि जीवन में न जीतना जरूरी है, न हारना जरूरी है, जीवन एक खेल है, इसे खेलना जरूरी है।
       बोलने पढ़ने सुनने में ऐसी बातें बहुत अच्छी रोचक लगती हैं। परंतु यह सत्य  नहीं है। मेरा प्रश्न है, जब जीतना जरूरी नहीं है, तो खेलना क्यों जरूरी है? क्या उद्देश्य है खेलने का? 
        इस बात का विचार किये बिना ही जो भी मन में आए, शब्दों की तुकबन्दी अच्छी लगे, वह सब, अनाड़ी लोग बोलते रहते हैं। ऐसे अनाड़ी लोगों से जरा बचकर रहें। 
       मनोविज्ञान का यह नियम है कि, कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति कुछ भी काम करता है, तो पहले उसका लाभ सोचता है, कि मुझे इस काम के करने से लाभ क्या होगा? यदि कुछ लाभ होगा, तब तो मैं इस काम को करूँ। यदि लाभ कुछ नहीं होगा, और हानि भी हो सकती है , तो कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति उस काम को नहीं करेगा।
         इस मनोवैज्ञानिक सिद्धांत के आधार पर ऊपर की उक्ति झूठ सिद्ध होती है। 
सत्य तो यह है कि जीवन को जीतना जरूरी है. जीतने का तात्पर्य है सुख से जीना.
यदि सुख की आवश्यकता नहीं है, तो फिर जीने का कोई उद्देश्य ही नहीं है। मनुष्य को तो छोड़िए, कुत्ते गधे पशु पक्षी आदि कम बुद्धि वाले प्राणी भी वहीं जाते हैं, जहां उन्हें सुख प्राप्त होने की आशा होती है। इतनी बुद्धि तो वे भी रखते हैं, वे ऐसा सोचते हैं,  जहां उन्हें लगता है कि जहां दुख मिलेगा, वहां नहीं जाना चाहिए, और वहाँ वे नहीं जाते। फिर मनुष्य को तो परमात्मा ने बहुत अधिक बुद्धि दे रखी है। यदि वह उस बुद्धि का लाभ न उठाए और मूर्खता के काम करे, तो वह पशुओं से भी कम बुद्धि वाला माना जाएगा। 
          इसलिए मनुष्य जीवन अनमोल है। इसका पूरा लाभ उठाएं। ईमानदारी, बुद्धिमत्ता और पूरी मेहनत से उत्तम कर्मों का आचरण करें। आपको जीवन में अवश्य ही सुख मिलेगा। और आप इस अर्थ में निश्चित रूप से जीत जाएंगे। केवल आप ही नहीं, सभी लोग जीत सकते हैं।
 - स्वामी विवेकानंद परिव्राजक


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