वैदिक विचार
जीवन भर दूसरों के साथ न्याय ही करें, अन्याय कभी किसी के साथ न करें।
आत्मा एक चेतन पदार्थ है। उसमें इच्छाएं हैं। कभी-कभी वह द्वेष भी करता है। वह कर्म करता है। अपने कर्मों का फल भोगता है। बहुत सारा उसमें ज्ञान विज्ञान है। कुछ भ्रांतियां हैं। कुछ शुद्ध ज्ञान भी है। चेतन पदार्थ होने से वह चुपचाप नहीं बैठता। अपने ज्ञान इच्छा प्रयत्न आदि गुणों से कुछ न कुछ कर्म करता ही रहता है।
कभी उसमें मिथ्याज्ञान उभरता है, तो वह गलतियां करता है। दूसरों को परेशान करता है। अन्याय करता है। पक्षपात करता है। छल कपट धोखा बेईमानी करता है।
जब उसमें शुद्ध ज्ञान उभरता है, तब वह अच्छे काम करता है। सेवा करता है। दान देता है। परोपकार करता है। प्राणियों की रक्षा करता है। निष्पक्ष होकर सबके साथ न्याय का व्यवहार करता है। ईश्वर का ध्यान करता है। यज्ञ हवन करता है। अच्छी पुस्तकें पढ़ता है। सत्संग में जाता है। कमजोर लोगों की मदद करता है।
इस प्रकार से हम देखते हैं कि आत्मा अच्छे बुरे सब प्रकार के कर्म करता रहता है। अपने कर्मों का फल भोगते रहने से आत्मा लगातार अनेक जन्मों तक सुख दुख भोगता है। फिर जब वह दुख भोगते भोगते दुखों से परेशान हो जाता है, तब वह दुखों से छूटने के लिए तपस्या करता है। तपस्या करने से उसके अच्छे संस्कार बढ़ते जाते हैं। वे संस्कार अनेक जन्मों तक उसके साथ चलते रहते हैं। और जैसे जैसे उसके अच्छे संस्कार बढ़ते जाते हैं, वैसे वैसे उसकी बुराइयां दोष अन्याय पाप कर्म भी घटते जाते हैं। और धीरे-धीरे वह आत्मा महापुरुष बन जाता है। जैसे महर्षि दयानंद सरस्वती, महर्षि गौतम, महर्षि पतंजलि आदि।
तो ऐसे ही किसी महापुरुष से किसी जिज्ञासु व्यक्ति ने पूछा कि महाराज ! आपने जीवन भर क्या किया और क्या नहीं किया?
उस महापुरुष ने उत्तर दिया कि मैंने पूरे जीवन भर किसी पर अन्याय नहीं किया, बल्कि सबके साथ उचित न्याय पूर्वक व्यवहार ही किया।
उस महापुरुष का उत्तर बहुत ही सुंदर और सटीक था। हमें भी ऐसा ही आचरण सीखना चाहिए। हम भी किसी पर अन्याय न करें। और सबके साथ सदा न्याय ही करें। इससे हमारा जीवन भी तनाव मुक्त, चिंता मुक्त, भयमुक्त होकर आनंद से भरपूर होगा।
- स्वामी विवेकानंद परिव्राजक
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