वैदिक शंका और समाधान
शंका- (एक नास्तिक द्वारा) सभी आस्तिक अपने-अपने परमात्मा से कहें कि वे उड़ने लग जाएँ। चाहे किसी भी मंदिर में मन्नत मांग लो, किसी भी गुरुद्वारे में माथा टेक लो, किसी भी मस्जिद में चादर चढ़ा लो या किसी भी चर्च में प्रार्थना कर लो, अपने धर्म के किसी भी अवतार को याद कर लो या किसी भी परमात्मा का सिमरन कर लो या कोई भी मन्त्र जाप कर लो। फिर भी कोई परमात्मा आपको हवा में उड़ने के लिए पंख नहीं लगाएगा।
समाधान- (एक आस्तिक द्वारा) हवा में उड़ना ही सब कुछ नहीं है। पक्षी जीवन भर हवा में उड़ कर निकल देता है मगर रहता तो पक्षी ही है। जिन्हें यह नहीं मालूम की मानव जीवन उद्देश्य क्या है, वही ऐसी अपरिपक्व बातें करते हैं। कारण स्पष्ट है कि यह धर्म के माध्यम से ही जाना जा सकता है कि मनुष्य के जीवन का उद्देश्य उड़ना नहीं अपितु परम सुख अर्थात् मोक्ष को प्राप्त करना है। पर आपने आपको नास्तिक कहने वाले लोग तो पहले से ही धर्म शब्द की तिलांजली अन्धविश्वास को धर्म समझ कर दे देते हैं। न उन्हें अन्धविश्वास और धर्म में अंतर मालूम है और न ही धर्म कि मुलभुत परिभाषा से उनका परिचय है। धर्म सदाचार है, श्रेष्ठ कर्म है, आत्मा का स्वाभिक गुण धैर्य,क्षमा, मन को प्राकृतिक प्रलोभनों में फँसने से रोकना, चोरी त्याग, शौच, इन्द्रिय निग्रह, बुद्धि अथवा ज्ञान, विद्या, सत्य और अक्रोध ये धर्म के दस लक्षण हैं। जिससे अभ्युदय (लोकोन्नति) और निश्रेयस (मोक्ष) की सिद्धि होती है, वह धर्म है। जो पक्ष पात रहित न्याय सत्य का ग्रहण, असत्य का सर्वथा परित्याग रूप आचार है उसी का नाम धर्म और उससे विपरीत का नाम अधर्म है। कार्ल मार्क्स ने जिसे धर्म के नाम पर अफीम कहकर निष्कासित कर दिया था वह धर्म नहीं अपितु मज़हब था। कार्ल मार्क्स ने धर्म ने नाम पर किये जाने वाले रक्तपात, अन्धविश्वास, बुद्धि के विपरीत किये जाने वाले पाखंडों आदि को धर्म की संज्ञा दी थी। जबकि यह धर्म नहीं अपितु मज़हब का स्वरुप था।
मनुष्य को ईश्वर से प्रार्थना कर क्या प्राप्त करना चाहिये? यह जानना अति आवश्यक है। गायत्री मन्त्र के माध्यम से मनुष्य ईश्वर से बुद्धि की प्रार्थना करता है। क्यूंकि बुद्धि के बल पर मनुष्य जीवन में बड़े से बड़ा लक्ष्य प्राप्त कर सकता है। बुद्धि के बल पर मनुष्य बड़े से बड़ी विप्पति से बाहर निकल सकता है। बुद्धि के बल पर मनुष्य सांसारिक दुखों को दूर कर सुख का भागी बन सकता है। बुद्धि के बल पर मनुष्य पापों से दूर रहकर पुण्य का भागी बन सकता है।
बुद्धि के बल पर ही मनुष्य ने हवाई जहाज बनाकर पक्षी के समान पंख लगाकर आकाश से लेकर अंतरिक्ष तक नाप डाला है। इसलिए हे नास्तिकों कुतर्की बनना छोड़ो, धर्म के मुलभुत स्वरुप को जानो और भोगवादी बनने के स्थान पर धर्माचारी बनो।
डॉ विवेक आर्य
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