ऋषि दयानन्द के से

 



 


 


 


 


 


मित्र मंडली ने ऋषिवर दयानंद को यह अशुभ समाचार सुनाया कि विरोधियों ने शहर में अफवाह फैला दी है कि स्वामी दयानंद ने भगवान श्री राम को 'भड़वा' कहा है । लोगों में भारी आक्रोश है । आपको मानने वाले भी आपसे नाराज हो गए हैं ,  अफवाहों का बाजार गर्म है और आपको अंग्रेजों (ईसाइयों ) का एजेंट साबित किया जा रहा है । आप बाहर कहीं न जाएं । आप पर हमले हो सकते हैं महाराज ।  


यह समाचार पाकर ऋषिवर को हार्दिक दुःख हुआ मगर उन्हें न क्रोध आया और न ही उन्होंने किसी को अपशब्द कहे ।  शांत झील  जैसे उनके पावन ह्रदय लोक में किसी के प्रति लेशमात्र भी द्वेष या वैमनस्य न था बल्कि एक करुणा का भाव था । उन्हें केवल पीड़ा थी कि जिनके लिए दिन-रात चिंतन और कठोर परिश्रम करते हैं वही उनके मार्ग में बाधा पहुंचाने पर आमादा हैं । वे कुछ समय के लिए एकांत स्थान पर समाधिस्थ हो गए ।


हाय  !   जो सन्यासी भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण को आदर्श ओर संसार के सर्वोत्तम महापुरुष मानता हो ,  उस शांत चित्त योगी पर लांछन लगाने वाले तुझे लज्जा नही आई रे । हाय ! एक योगी घर-घर जाकर किस किस को समझाए कि यह सब झूठ है ।  हे पापियों !  तुम्हारे पास तो सारे संसाधन , जन शक्ति , धन और पत्र-पत्रिकाओं का सहारा है जिससे तुम पवित्र ऋषिवर के प्रति मिथ्या बातें फैलाते हो और भोले-भाले लोगों को गुमराह करते हो ।


अगले दिन वह महाप्राण यौद्धा दीर्घ समाधि से उठा और आगामी महासंग्राम का बिगुल बजा दिया । उनके तीखे  साक्ष्य-बाण  शत्रु सेना में कंपकपी मचाने लगे ।  उन्होंने व्याख्यानों की झड़ी लगा दी और सदियों से मूर्छित आर्य जाति न केवल जागी बल्कि हाथों में सुदर्शन चक्र लेकर समरांगण में कूद पड़ी । मृत्यु को भी भयभीत कर देने वाला वह महायोगी ऊंची हुंकार भरकर पाखण्ड के मर्मस्थल को कुचलने लगा । सदियों से विद्वान साधू होने का अहंकार पाले बैठे महामूर्ख अनपढ नशेड़ियों की रातों की नींद हराम होने लगी । ह्रदय-सम्राट वह युवा सन्यासी  गहरी निद्रा में सो रहे बड़े-बड़े मगरमच्छों को झिंझोड़ कर जगा रहा था ,  उनको भगा-भगा कर पीट रहा था । अज्ञानता की अंधेरी कोठरियों में पड़े निस्तेज लम्पट अपने सामने दयानंद-भास्कर को पाकर आंखें मसलने लगे । ऋषि ने भाषणों की झड़ी लगा दी -


" संसार मे वेद ही प्रमाण हैं , यह महादेश आर्यावर्त जब तक वेदमार्ग पर चलता रहा तब तक करोड़ों साल तक संसार पर राज करता रहा , तुम पर राज करने वाली म्लेच्छ जातियाँ तुम्हारे पैरों की धूल भी नही है , महाभारत के युद्ध पश्चात वेदज्ञान से आर्य जाति धीरे-धीरे विमुख होती गई और तुम वीरों के , महावीरों के , राम-कृष्ण और दिग्विजयी सम्राटों के वंशज परतन्त्रता की मजबूत बेड़ियों में झकडे गये ।  हे आर्यों के वंशजो ! वेदज्ञान रूपी ब्रह्मास्त्र से इन परतन्त्रता के बेड़ियों को उखाड़ फेंकों और पूरी पृथ्वी पर अपने दिग्विजयी घोड़े दौड़ा दो । "


सिंह जैसी इस घोर-गर्जन ने भारत के मानस में हलचल मचा दी । शहर के शहर और गांव के गांव ऋषिवर के साथ हो लिए । विद्यालयों ओर महाविद्यालयों के छात्र स्वामी जी के अनुयायी बनने लगे और भारतदेश आजादी के नारों से झूमने लगा ।  


उधर अफवाह फैलाने वाले महा लम्पट  और पाखण्डी जमात अपने बिलों में दुबक कर कुलबुलाने लगे । उनकी स्थिति उस भयंकर काले सर्प जैसी हो गई थी जिसे संकरे पिंजरे में बंद कर दिया गया हो और कोई उस सर्प के मुंह को लोहे की छड़ी से मारता हो और वह सर्प बार-बार फुंकार तो मारता हो मगर कुछ कर न पाता हो ,  फिर कुछ देर बाद फुंकारना छोड़कर केवल उस छड़ी की मार सहता हो ।


-  ईश्वर वैदिक


sarvjatiy parichay samelan, marriage buero for all hindu cast, love marigge , intercast marriage , arranged marriage


rajistertion call-9977987777, 9977957777, 9977967777or rajisterd free aryavivha.com/aryavivha app     


 


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।