महर्षि के जीवन प्रसंग
स्वामी दयानंद जी की उस व्यक्ति से गहरी मित्रता हो गई । वह एक घड़ीसाज ( घड़ी ठीक करने वाला ) था । वह जैनी था ।
उसने मौका पाकर स्वामी जी को अपना दुख कह डाला । वह बोला कि बहुत साल पहले अपने मत द्वारा निर्देशित एक प्राणायाम की विधि का मैंने अभ्यास किया तो उससे मेरे नाभि स्थान के पास की वायु खिसक गई । अब मुझे भूख नहीं लगती और सदैव पेट में दर्द रहता है तथा मैं रोज रोज कमजोर हुआ जाता हूँ ।
स्वामी जी मित्र का दुःख न देख सके । वे तुरंत समझ गए कि इन्हें क्यों ऐसा हो रहा है । हालांकि उन्हें वहां से प्रस्थान करना था मगर मित्र के इलाज हेतु वे एक दो दिन के लिए वहीं रुक गए । अगले दिन सुबह खाली पेट उन्होंने अपने मित्र को भूमि पर सीधा लिटाया, एक व्यक्ति से कहा कि इसका सिर भूमि से उठने न देना । इसके बाद उनके घुटने मोड़ कर उसकी छाती से सटाये और उसकी टांगों पर खड़े हो गए । ऐसा करने से उसका वह रोग और दर्द सदा के लिए जाता रहा । स्वामी जी ने उसे समझाया कि वह प्राणायाम अऋषिकृत और अवैज्ञानिक है , अब उसे कभी न करना ।
इसी दौरान उस घड़ीसाज मित्र ने उनको घड़ी के सारे पुर्जे खोलना और उन्हें फिर से जोड़ना सिखाया । स्वामी जी एक दो बार में ही इसमें निपुण हो गए ।
उसने स्वामी जी को घड़ी ठीक करने वाले ओजार एक चिमटी और एक पेंचकस दिए ( उस जमाने में ये वस्तुएं दुर्लभ और महंगी होती थी ) स्वामी जी ने इनका मूल्य देना चाहा मगर वह न माना । जब स्वामी जी के प्रस्थान का समय हुआ तो वह व्यक्ति रोने लग गया , स्वामी जी उसे ढांढस बंधाते रहे ।
एक बार स्वामी जी के निवास पर छः लोग बैठे उनसे बातें कर रहे थे कि कोई सज्जन गाय का दूध ले आया । वह एक बड़ा गिलास दूध लुटिया में लाया था । स्वामी जी का यह नियम था कि वे अकेले कोई द्रव्य नहीं खाते थे । बांटकर खाते थे । इस नियम का वे दृढ़ता से पालन करते थे । उन्होंने छः गिलास मंगवाए और उनमें समान रूप से थोड़ा-थोड़ा दूध डलवाया और सबको पीने को दिया । उनमें से एक बहुत कमजोर व मरियल सा आदमी था वह बोला कि स्वामी जी ! मैं दूध नहीं पिया करता । कई साल से मैंने दूध न पीने की प्रतिज्ञा कर रखी है ।
उसकी यह बात सुनकर स्वामी जी की हंसी छूट गई , वे खूब हँसे । वे काफी देर तक हँसते रहे । दिखने में वह आदमी बिलकुल कमजोर व् दुबला सा था । स्वामी जी बोले - भले आदमी ! दूध भी कोई छोड़ने की वस्तु है ? प्रतिज्ञा करनी थी तो बुराइयों को छोड़ने की करते । फिर स्वामी जी ने जबर्दस्ती उसकी यह मूर्खतापूर्ण प्रतिज्ञा तुड़वाई और उसे दूध पिलाया तथा उसे दूध का महत्व समझाया ।
ईश्वर वैदिक
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