हिन्दू बुद्धि पर पार्टी का ग्रहण

 



 


 


 


 हिन्दू बुद्धि पर पार्टी का ग्रहण

टीपू सुलतान के जन्मदिन पर शिवसेना सांसद कृपाल तुमाने की श्रद्धांजलि पर सोशल मीडिया में हिन्दू बौद्धिकों ने मजाक उड़ाया, कि शिवसेना कितनी गिर गई है! लेकिन अभी सेना-भाजपा गठंबंधन होता तो लगभग चुप्पी रहती। उलटे उस पर प्रश्न उठाने वाले हिन्दू को कहा जाता कि वह मामले की नजाकत नहीं समझ रहा, कि वैसा करना ‘रणनीति’ है, जिसे समझना चाहिए, आदि। यह कोई कल्पना नहीं। भाजपा सत्ता द्वारा किसी भी मुस्लिम-परस्त कदम पर यही होता है। तब हिन्दू बौद्धिक बगलें झाँकने लगते हैं। टीपू वाले मामले में ही तुलना करें। अजमेर में मोइनुद्दीन चिश्ती की कब्र पर बड़े-बड़े भाजपा नेताओं द्वारा पूरे प्रचार के साथ, नियमित चादर चढ़ाने, उसे विशेष ईनाम, अनुदान देने की क्या कैफियत है?


सर्वविदित है कि बाहरी हमलावर शहाबुद्दीन गोरी के हमले के साथ मोईनुद्दीन चिश्ती आया था। दोनों के बीच सहयोग था। चिश्ती की मदद से ही मुहम्मद गोरी ने हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान को हराया और मार डाला था। प्रसिद्ध इतिहासकार सैयद अतहर रिजवी ने खुद चिश्ती को उद्धृत किया है, “हम ने पिथौरा को जीवित पकड़ा और इस्लामी फौज के सुपुर्द कर दिया।” (ए हिस्ट्री ऑफ सूफीज्म इन इंडिया, पृ. 116) चिश्ती ने अजमेर में एक शिव मंदिर को तोड़कर अपना अड्डा बनाया था। आज वहीं जाकर संघ-भाजपा नेता माथा टेकते हैं, तो इस का क्या संदेश है?


इस्लामियों को इस का संदेश मिलता है कि उनके हमलावर इतिहास, मानसिकता और प्रतीकों के सामने हिन्दू झुकते हैं। इसलिए उन्हें अपना मिजाज अंदाज बदलने की कोई जरूरत नहीं। बल्कि वही करना उस पर अड़ना चाहिए – क्योंकि उसी को चढ़ावा मिलता है! यहाँ याद रहे, कि उसी चिश्ती के शागिर्द औलिया निजामुद्दीन थे, जिन के कारनामों की परंपरा लंबे समय से तबलीगी जमात चला रही है। इन सब की हिन्दू-घृणा, अलगाववादी और साम्राज्यवादी उद्देश्य उनके अपने भाषणों, साहित्य में सार्वजनिक है। यदि इन के सामने संघ-भाजपा के बड़े सिर नवाते हैं, उन्हें ‘पदम भूषण’ से सम्मानित करते हैं, तो यह टीपू सुलतान को सलामी देने की तुलना में बहुत अधिक बुरा है! क्योंकि चिश्तियों, तबलीगियों को आज सम्मानित कर संघ-परिवार न केवल सचेत इस्लामियों को प्रोत्साहन देता है, बल्कि हिन्दुओं को भ्रमित भी करता है। उन इस्लामियों को वैचारिक चुनौती देने, अलग-थलग करने के बजाए उनके सामने हिन्दू को झुकने के लिए कहा जाता है। 


आज टीपू सुलतान का कोई संप्रदाय नहीं चल रहा, जबकि चिश्ती, तबलीग का चल रहा है। अतः तबलीगियों, देवबंदियों, आदि को हिन्दू नेताओं द्वारा सम्मान कई गुणा अधिक हानिकारक है। किन्तु हिन्दू बाध्य किए जाते हैं, कि संघ परिवार द्वारा ऐसे हानिकर कामों का बचाव ही नहीं, प्रचार भी करें! ऐसा प्रचार, जो खुद उनके नेता करने से बचते हैं, ताकि हिसाब न देना पड़े। किन्तु अपने कार्यकर्ताओं, सहयोगी बौद्धिकों को प्रोत्साहित करते हैं कि काल्पनिक, ऊल-जुलूल दलीलों से चिश्तियों, तबलीगियों के प्रति संघ-भाजपा की नीति को सही ठहराएं।


इस प्रकार, अच्छे-अच्छे हिन्दू की बुद्धि को ग्रहण लग जाता है। वे अपने धर्म-समाज के बदले पार्टी, संगठन की रक्षा में हलकान होते रहते हैं। चाहे पार्टी कितने ही हानिकर, अंतर्विरोधी काम क्यों न करती रहे। वे लक्ष्य के बजाए पथ, साध्य के बदले साधन, मुद्दे के बजाए पार्टी में फँस जाते हैं। जबकि पार्टी तो लाखों कार्यकर्ताओं, सैकड़ों नेताओं, करोड़ों-अरबों के साधन-संसाधन, संचार-माध्यम, बजट, विधायिका, आदि पर नियंत्रण से पूर्ण सशक्त है। फिर भी वह हमारे धर्म-समाज की रक्षा करे, इस के बदले बेचारे पैदल, साधनहीन लेखकों, पत्रकारों, जाँबाजों से अपेक्षा है कि उसी पार्टी के लिए झूठी-सच्ची दलीलें करते रहें। जैसे-जैसे पार्टी का गठबंधन बदले, वैसे-वैसे अपनी चीख-पुकार की धार भी बदलें। यदि कल उद्धव भाजपा के साथ आ जाएं, तो उनके गीत गाएं; और नीतिश अलग हो जाएं, तो उधर कीचड़ उछालें।


यह बौद्धिकता नहीं है। यह बुद्धि को कुंद कर लेना है। यह वह बुद्धि-विवेक नहीं, जिस की सीख स्वामी विवकानन्द, श्रीअरविन्द, श्रद्धानन्द, टैगोर, अज्ञेय, राम स्वरूप, सीताराम गोयल, जैसे समकालीन मनीषियों ने दी थी। बल्कि यह गाँधीवाद या कम्युनिज्म की तरह अपने विवेक को कुचल कर अपने नेता-पार्टी की जयकार में जैसे भी लगे रहना है। वरना, स्वतंत्र भारत में हमारे धर्म-समाज की हानि वाले कामों के लिए जितना हिसाब कांग्रेस, कम्युनिस्ट, गाँधीवादियों को देना है, उस से शायद ही कम संघ-भाजपा के खाते में है। इस दावे का फैसला आसानी से हो सकता है, यदि कार्यों-परिणामों की समीक्षा एक तराजू से हो। विवेक को स्वतंत्र रूप से न्याय करने दें।


यह समझने के लिए बड़ी प्रतिभा की जरूरत नहीं कि यदि कांग्रेस द्वारा मुस्लिम नेताओं को विशेष संस्थान, जमीन, अनुदान देने से इस्लामी मानसिकता का तुष्टिकरण होता है, उस की स्रम्राज्यवादी भूख, और योजनाओं को मदद दी जाती है; तो वही काम भाजपा द्वारा करने से कोई अन्य परिणाम होगा? किसी को जहर सगा दे या संबंधी, नतीजा एक ही होगा। खुद मुस्लिम नेताओं के बयानों, कामों, दावों से देखा जा सकता है कि वे हिन्दू नेताओं की इस नीति को क्या समझते हैं। चाहे हिन्दू किसी पार्टी के हों।


अतः दुर्भाग्य है कि अच्छे-अच्छे प्रतिभावान, हिन्दू बौद्धिक रोज चोट खाते अपने धर्म-समाज की रक्षा के बदले सत्ता-साधन से लदी पार्टी की ही रक्षा में बेहाल रहते हैं! हरेक सोशल मीडिया ग्रुप में यह दिखता है उस में किसी स्थिति, समस्या, उपाय पर सार्थक विचार या शिक्षण के बदले अधिकांश समय राहुल, ममता, केजरीवाल, आदि का मजाक उड़ाने, और हर भाजपाई नाटक की जयकार करने में जाता है। क्या इस से हिन्दू धर्म-समाज को लाभ हुआ है? सही उत्तर के लिए देखें कि इसी बीच इस्लामी बौद्धिक क्या करते हैं। वे कभी किसी पार्टी या नेता के लिए अपनी मजहबी टेक, उसके प्रत्यक्ष हित को कभी नहीं छोड़ते। उस से जरा भी हटने वाले मुस्लिम की भी छीछालेदर करते हैं, चाहे वह कितना भी बड़ा हो।


इस के उलट, हिन्दू बौद्धिक संघ-परिवार का मुँह देख-देख कर बोलते हैं। कोई गया-गुजरा नेता या पत्रकार यदि भाजपा समर्थक हो, तो प्रशंसा। पर जिस ने हिन्दू धर्म-समाज की अनूठी सेवा की उसे भी फटकारा जाता है यदि उस ने पार्टी से मतभेद किया। सीताराम गोयल से लेकर अरुण शौरी तक ऐसे कई उदाहरण प्रत्यक्ष हैं। यह गुरु-निन्दा जैसा महापातक है। फिर, विवेक को ताक पर रखकर चलने के घातक परिणाम पिछले सौ साल में वैसे भी देख सकते हैं। बार-बार दो-चार मुस्लिम नेताओं ने अपनी दूरदर्शिता और कटिबद्धता से तमाम संगठित, लोकप्रिय, सत्तासीन हिन्दू नेताओं से इस्लाम के लिए बड़ी-बड़ी, दूरगामी मार करने वाली जमीनें हासिल की।  यह आज भी हो रहा है। केवल अच्छी नीयत से हानिकारक कामों की तासीर बदल नहीं जाती। यह तो गाँधीजी के अध्याय से ही हमें समझ सकना चाहिए था। पर हमारे मार्गदर्शक उसी गाँधीवाद को अपने पार्टी-वर्क में लपेट कर निगलने को मजबूर कर रहे हैं। सत्य-निष्ठा के बदले पार्टी-निष्ठा, विवेक के बजाए नेता पर भरोसे की सीख दे रहे हैं। यह हिन्दू-दृष्टि नहीं है। किसी नेता या पार्टी पर सारा दारोमदोर रखना कोई गर्व की नहीं, चिन्ता की बात है।


- डॉ. शंकर शरण (११ मई २०२०)


sarvjatiy parichay samelan, marriage buero for all hindu cast, love marigge , intercast marriage , arranged marriage

rajistertion call-9977987777, 9977957777, 9977967777or rajisterd free aryavivha.com/aryavivha app


 


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।