ज्ञानमयी अमृतवाणी                   -

 



 


 


ज्ञानमयी अमृतवाणी 
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  🌷 पत्नी, सन्तान, बीमारी, धन सम्पदा, विद्या अभ्यास, सज्जनों की सेवा और कर्तव्यपालन  - इनके प्रति कभी लापरवाह न रहें । माता, पिता , गुरु, मालिक, भाई, पुत्र और मित्र इनकी कभी उपेक्षा न करें। परिवार के सदस्यों, महिलाओं, भाईयों, पड़ौसियों बच्चों, वृद्धों, पराई स्त्रियों, रोगियों और जो अपने आश्रित हो उसे कटुवचन न कहें और किसी अजनबी का कभी विश्वास न करे।


    अपनी दौलत, अपनी कमजोरी, अपने घर के दोष, मन की योजना, मित्र के दोष, दिया हुआ दान, किया हुआ उपकार, और अपने अपमान की बात  - के विषय में किसी से चर्चा न कर गुप्त रखें। किसी पुरुष से उसका वेतन न पूछें, किसी महिला से उसकी आयु न पूछें, पर स्त्री या पर पुरुष से आंखें मिलाकर बात न करें न एकान्त में रहें, जब तक कार्य सफल न हो जाए तब तक उसके विषय में किसी से चर्चा न कर गुप्त रखें, उसके विषय में किसी को कुछ न बताये।


   कर्ज़ लेते समय तो राहत मालुम देती है  पर लौटते समय कष्ट होता है, दुष्ट के साथ मित्रता करते समय शुरू में तो अच्छा लगता है पर बाद में कष्ट होता है।  मन में उठने वाली गलत और हानिकारक कामना को पूरा करते समय तो मज़ा आता है पर जब इसका परिणाम सामने आता है तो कष्ट होता है। बिना आगा पीछा और भला बुरा सोचे कोई काम करना तो आसान होता है पर इसका फल भोगने में कष्ट होता है। 


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