गायत्री―महामन्त्र
गायत्री―महामन्त्र
ओ३म् भूर्भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात् ।। -(यजु० ३६/३)
ओ३म्―ईश्वर का सबसे उत्तम अपना नाम है।
भूः―प्राण स्वरुप
भुवः―दुःखनाशक
स्वः―सुखस्वरुप
तत्―उस
सवितुः―संसार को पैदा करने वाले प्रेरक
देवस्य―दिव्य गुणों वाले ईश्वर के
वरेण्यं―वरने योग्य
भर्गः―शुद्ध स्वरुप को
धीमहि―हम धारण करें
यः―जो
नः―हमारी
धियः―बुद्धियों को
प्रचोदयात्―अच्छे मार्ग की ओर ले जाए।
गायत्री मन्त्र वेदों का सार है। छन्दों में सबसे उत्तम छन्द गायत्री है। इसे सावित्री और गुरु मन्त्र भी कहते हैं। गायत्री छन्द वाला होने से यह गायत्री नाम से प्रसिद्ध है। अथर्ववेद को छोड़कर यह तीनों वेदों में मिलता है। जो इसे गाता है, अर्थ जानकर इसका निरन्तर जप करता है, उसकी रक्षा होती है। गाय नाम प्राणों का भी है, इसके जप से प्राणों की भी रक्षा होती है। इसलिए यह प्राणों की रक्षा करने वाला मन्त्र है। अथर्ववेद में इसे वेदमाता भी कहा गया है। जैसे माता सब प्रकार से बच्चे का पालन-पोषण करती है, उसके दुःख दूर करती है उसी प्रकार गायत्री माता भक्त जनों की इच्छाओं को पूर्ण करती है, उनके कष्ट हरती है और उन्हें सब तरह के सुख देती है। सविता सबको शुभ प्रेरणा, विचार देने वाले परमात्मा की शक्ति इस मन्त्र से प्राप्त होती है। इस कारण इसे सावित्री मन्त्र भी कहते हैं।
प्राचीन काल में गुरुकुल में ब्रह्मचारी का यज्ञोपवीत हो जाने पर वेदारम्भ संस्कार में आचार्य के रुप में गुरु इसी मन्त्र का उपदेश करता था। आज भी गुरुकुलों में ऐसा ही होता है। सविता सूर्य को भी कहते हैं। सूर्य जैसा तेज इस मन्त्र के निरन्तर जप से प्राप्त हो जाता है।
गायत्री, वेदमाता का अर्थ जानकर उसका लगातार नियम से जप करने से सात चीजें प्राप्त होती हैं―आयु, प्राण, प्रजा, पशु, यश, धन और ब्रह्मतेज। इन्हैं पाकर गायत्री का सच्चा भक्त पुरुष मोक्ष को प्राप्त करता है, यह गायत्री मन्त्र का महान् पुण्य का फल है। यह वेदों का सार है। इस विषय में मनु जी का वचन इस प्रकार है―प्रजापति ने तीनों वेदों से अ, उ, म् को दुहा। (तीनों वेदों से एक-एक पाद को दुहा। भूः भुवः स्वः इन व्याह्रतियों के साथ दुहा।) वेदज्ञानी ब्राह्मण दोनों सन्धिकालों में इसका जप करके वेदों के पढ़ने के पुण्य वाला हो जाता है।
भारत के महापुरुषों और विद्वानों ने भी गायत्री मन्त्र की बड़ी महिमा गाई है। लोकमान्य तिलक ने माण्डले जेल में रहकर लिखा था कि "गायत्री मन्त्र में यह भावना है, जो हमें बुरे मार्ग से छुड़ाकर अच्छे मार्ग की ओर ले जाती है।" पण्डित मदनमोहन मालवीय ने लिखा है कि "गायत्री मन्त्र तो निराला रत्न है। गायत्री से बुद्धि पवित्र होती है और आत्मा में ईश्वर का प्रकाश प्रकट होता है। गायत्री में ईश्वर का साक्षात्कार कराने और ऊंचे भावों को जगाने की शक्ति है।" पूना में भाषण देते हुए महर्षि दयानन्द ने बताया था कि "गायत्री के जप से बुद्धि के सारे विकार दूर हो जाते हैं।" शिवजी ने पार्वती को गायत्री की महिमा बताते हुए कहा है कि "गायत्री वेदमाता है। वह कल्याण करने वाली शक्ति है। मैं उसी की उपासना करता हूँ।" भीष्म पितामह ने महाभारत में युधिष्ठिर को गायत्री महिमा बताते हुए कहा है कि "युद्धकाल में, प्रस्थान काल में, कार्य सिद्धि हेतु सदा गायत्री का ही जाप करे। जहाँ गायत्री का जाप होता है, उस घर में पन्नग (साँप) वास नहीं करते, बच्चे नहीं मरते अर्थात् बाल मृत्यु नहीं होती, आग, जल, सर्प, बिजली, दुष्ट मनुष्य―इन सबका भय नहीं रहता अर्थात् ये हानि नहीं पहुँचा सकते।"
हमारे महापुरुष श्रीराम, श्रीकृष्ण, स्वामी दयानन्द आदि ये सभी गायत्री-जप ही करते थे।
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