* बिना प्रमाण और तर्क के नहीं बोलना चाहिए।*
* बिना प्रमाण और तर्क के नहीं बोलना चाहिए।*
आजकल एक फैशन चलता है। कोई भी व्यक्ति कुछ भी मान लेता है, कुछ भी बोल देता है। उसके मानने और बोलने के पीछे कोई प्रमाण तर्क नहीं होता। फिर भी वह अपने आप को बिल्कुल सही मानता है, कि मैं जो जानता हूं वही ठीक है, बाकी सब लोग मूर्ख हैं।
तो यह समझना बुद्धिमत्ता नहीं है कि *मैं ही ठीक हूं बाकी सब मूर्ख हैं. जब कि उसके पास अपनी बात को सिद्ध करने के लिए कोई प्रमाण नहीं है, कोई तर्क नहीं है।
इस पर आश्चर्य की बात एक और यह है कि लोग तर्कशास्त्र तो पढ़ते नहीं, और अपने आप को बड़ा तर्कशास्त्री मानते हैं।*
जिसके पास प्रमाण हो और तर्क हो, वह तो कह भी सकता है , कि मैं ठीक जानता हूं। पर बिना प्रमाण तर्क के कुछ भी मानना और कुछ भी बोलना, यह समझदारी नहीं है।
आप रोज के जीवन में कितने ही लोगों से मिलते होंगे, कितने ही लोगों से बात करते होंगे। चाहे साक्षात मिलते हों, चाहे टेलीफोन से बात करते हों, तो उन सब लोगों की परीक्षा करें, कि कौन व्यक्ति कैसा है, उसमें क्या गुण हैं, कितनी उस में बुद्धिमत्ता है, उसका आचरण कितना सत्य है, कितना वह सेवादारी परोपकारी है, कितना स्वार्थी है, आदि-आदि। सब लोगों का परीक्षण करें। और जिन लोगों में प्रमाण व तर्क से अच्छे गुण सिद्ध हो जाएं, उनकी प्रशंसा भी करें, उनको गुणवान भी कहें। ऐसा करने से वे दूसरे लोग भी आपको बुद्धिमान मानेंगे और आपको भी सम्मान देंगे। क्योंकि दूसरे लोग भी आपका परीक्षण करते हैं।
यदि आप बिना प्रमाण और बिना तर्क से परीक्षा किये, कुछ भी मानेंगे और कहेंगे, तो बुद्धिमान लोग आपको निश्चित रूप से मूर्ख समझेंगे। इसलिये आप दूसरों के साथ बहुत संभलकर, सोच समझकर, प्रमाण तर्क से परीक्षा करके बोलें।
- स्वामी विवेकानंद परिव्राजक
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