अमृतवाणी

   



 


जीवन  संघर्ष का नाम है और संघर्ष ही जीवन है अत: इससे घबराना या मुंह मोड़ना उचित नही ।दुनिया में जब आये है तो जीना ही पड़ेगा लेकिन सही जीवन वही जी सकता है जिसके पास स्वस्थ  , निरोग और शक्तिशाली शरीर होगा । स्वस्थ रहना हमारा जन्म- सिद्ध स्वरूप है। इसे बिगड़ने न दे।


    बिमार होना हमारा स्वभाव नही है। निरोग रहना हमारा स्वभाव है इसलिए बिमार होने पर हमें बेचैनी होती है। ऐसा कौन मुर्ख  होगा जो बिमार होना चाहेगा लेकिन फिर भी बिमार होते है। आगंतुक- रोग या पीड़ा होने की बात जुदा है पर निज - रोग याने आहार- विहार और आचरण  के कारण बिमार होना हमारी मुर्खता है।


      कर्ज, शत्रु और रोग  - इनको कभी साधारण या छोटा न समझों, इनकी तरफ से लापरवाह न रहों, और इनसे जल्द से जल्द छुटकारा पाने का पूरा प्रयत्न करों, इनको जड़ से समाप्त करना जरूरी होता है, क्योंकि यदि ये ज़रा से भी बच जाए तो फिर बढ़ने लगते है और ये जितने बढ़ते हैं उतने शक्तिशाली होते हैं और हानि पहुंचाते हैं।





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