आत्मा का स्वरुप


 


 



मेरा एक प्रश्न है, आत्मा  देख, सुन सकता है,बोल सकता है, ठीक,
पर उसका स्वरूप क्या होता है , क्या पहचान होती है, एक दूसरे को कैसे पहचान करते हैं?जब शरीर नहीं,  कोई रूप  नहीं, तो कैसे जाने कोंन है?
-अर्चना आर्य

नमस्ते अर्चना जी
उत्तर-
आत्मा का स्वरूप चेतन है अल्पज्ञ है थोड़े ज्ञान वाला है, एकदेशीय है,परिच्छिन्न है, व्याप्य है, अणु मात्र है इत्यादि।
उसके लक्षण जिनसे पता चलता है वे योगदर्शन के अनुसार- इच्छा, द्वेष, प्रयत्न सुख, दुःख, ज्ञान इत्यादि होते हैं। इन लक्षणों में से सुख दुःख जीवात्मा के साथ मोक्ष में नहीं रहते।
हाँ इच्छा, द्वेष-अनिच्छा और ज्ञान यह तीन लक्षण रहते हैं इन तीनों में से जो द्वेष है वह राग द्वेष वाला नहीं रहता, किन्तु किसी भी पदार्थ को देखने की अनिच्छा अर्थ से द्वेष रहता है। जैसे सूरज देखने का मन नहीं तो नहीं देखेगा, चंद्रमा में घुसने की इच्छा तो आनंद प्राप्त कर लेगा।
तीसरी बात मुक्त आत्माएं कैसे पहिचान करती हैं?
उत्तर-एक बात समझने की है कोई भी पहिचान वैसे भी इन बाह्य इंद्रियों से नहीं होती। बाह्य इंद्रियां तो गोलक हैं। इनके पीछे जो चेतन आत्मा है वह ज्ञान करता है अपनी स्वाभाविक शक्ति से, किन्तु अल्पज्ञ होने से थोड़ा ही कर पाता है जब परमात्मा से मिलता है तो जितना भी करना चाहे कर लेता है जैसे- एक शिष्य गुरुजी से कितना भी ज्ञान ले ले गुरु समीपता, सानिध्य, शरण से। ठीक उसी तरह ईश्वर के अधीन अपनी स्वाभाविक शक्तियों के साथ मुक्तात्मा ईश्वरीय ज्ञान बल द्वारा कहीं भी आ जा सकता है कुछ भी छू, देख, सुन, सूंघ इत्यादि व्यवहार कर सकता है। सभी मुक्तात्मायें परस्पर ईश्वर की सहायता से वार्ता आदि व्यवहार करती हैं। कई बार संसार में भी देखा जाता है दो प्रिय आत्माएं मन की बात मन से समझ लेती हैं संसार में संसार  की सामिग्री- मन इन्द्रिय सूक्ष्म स्थूल शरीर से व्यवहार चलता है परमात्मा में परमात्मा की सामिग्री-ज्ञान बल आनंद इत्यादि गुणों की सहायता से व्यवहार चलता है।
चौथी बात हर वस्तु को देखकर रूप रंग से जाना जाए आवश्यक भी नहीं कई वस्तुओं को बिन आकार वाली हवा, आकाश इत्यादि को भी जानते ही हैं। हाँ परन्तु यहां शरीर की ज्ञानेंद्रियों से अनुभव कर ज्ञान करते हैं। किंतु इनमें जो देखने सुनने इत्यादि की जो शक्ति होती है वह गोलकों की नहीं वह जीवात्मा की अपनी स्वाभाविक शक्ति ही होती है। हम देखते हैं मरने पर सभी शरीर के गोलक आंख कान ज्यों की त्यों पड़े रहते हैं यदि गोलकों में शक्ति होती तो वे देखते सुनते इत्यादि व्यवहार करते लेकिन ऐसा नहीं देखा जाता, शरीर के जड़ होने से।
अतः चेतन जीवात्मा अपनी निजी 24 स्वाभाविक शक्तियों के साथ (जिसका नाम सत्यार्थप्रकाश के बन्ध मुक्ति विषय के नवम समुल्लास में हैं देख सकते हैं। वहीं से कल काव्य में मैंने भी वर्णन कर दिया है देख लेंगे) परम चेतन परमात्मा से मिल उसकी शरण से मुक्ति में सारे परस्पर व्यवहार कर लेता है।
-आचार्या विमलेश बंसल आर्या



sarvjatiy parichay samelan, marriage buero for all hindu cast, love marigge , intercast marriage , arranged marriage 

rajistertion call-9977987777, 9977957777, 9977967777or rajisterd free aryavivha.com/aryavivha app



Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।