आज का विचार
भविष्य बहुत अनिश्चित है, जीवन में प्राप्त सुविधाओं का आज ही सदुपयोग करें।
आपने ऐसी बातें प्रायः लोगों से सुनी होंगी, कि आज ही खा लो, पी लो, मौज कर लो। कल किसने देखा है किसने देखा है अगला जन्म
लोगों के इस वाक्य में भविष्य की अनिश्चितता प्रतीत होती है। अर्थात मोटे तौर पर लोग इतना तो स्वीकार करते हैं कि - "कल क्या होगा, कुछ मालूम नहीं है। जो भी धन संपत्ति या भोग के साधन आज हमारे पास हैं, इनका सुख ले लो। कल पता नहीं, ये भोग के साधन मिलें, या न मिलें। अगला जन्म भी पता नहीं होगा, या नहीं होगा। यदि आज इन वस्तुओंं का सुख नहीं लिया, और यदि अगला जन्म भी न मिला, तो हम मूर्ख कहलाएँगे। लोग कहेंगे, संपत्ति मिली भी, और फिर भी कोई सुख नहीं भोगा." ऐसा चिंतन बहुत लोगों का आपने देखा सुना होगा। यह आधा सत्य है।
इस चिंतन में यह तो सत्य है कि -- कल हम जीवित रहेंगे या नहीं रहेंगे, इस बात की कोई गारंटी नहीं है। आज जो संपत्ति साधन हमारे पास हैंं, ये भी कल तक रहेंगे या नहीं रहेंगे, इस बात की भी गारंटी नहीं है। और यह भी सत्य है कि भविष्य में इसी जन्म में और नए साधन प्राप्त होंगे या नहीं होंगे, इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है। परंतु "यह सत्य नहीं है कि अगला जन्म होगा या नहीं
सत्य तो यह है कि अगला जन्म तो निश्चित रूप से होगा। परंतु वह हमारे वर्तमान जन्म के कर्मों के आधार पर होगा। यदि हमारे इस जन्म में कर्म अच्छे हैं, तो अगला जन्म निश्चित रुप से अच्छा ही मिलेगा। यदि इस जन्म के हमारे कर्म खराब हैं, तो अगला जन्म खराब ही मिलेगा। यह सत्य है।
अब सोचने वाली बात यह है कि वर्तमान जन्म में लोग अच्छे काम तो कर रहे हैं कम, और बुरे काम कर रहे हैं अधिक। इसलिए उनको मन में संशय रहता है कि अगला जन्म पता नहीं कैसा होगा? होगा भी, या नहीं होगा? यह भी संशय है। क्योंकि विधिवत् वैदिक शास्त्रों का अध्ययन करते नहीं। इसलिये इस प्रकार के संशय मन में उत्पन्न होते रहते हैं।
तो अपने मन में इस प्रकार का संशय न रखें। इस बात को दृढतापूर्वक अपने मन में बिठाएँ, कि वैदिक शास्त्रों में लिखा है, कि अगला जन्म तो निश्चित रूप से होगा। वह भी तो प्रमाण है। अगला जन्म हमारे वर्तमान जन्म के कर्मों के आधार पर ही होगा। इसलिए यदि हम इस जन्म में भी अपने भविष्य को अच्छा बनाना चाहते हैं; और अगला जन्म भी उत्तम स्तर का प्राप्त करना चाहते हैं तो हमें इस जन्म में अच्छे-अच्छे कर्म करने चाहिएँ। जो साधन संपत्तियां प्राप्त हुई हैं, इनका भोग विलास में दुरुपयोग न करके, अपने जीवन की रक्षा और दूसरों का उपकार करने में इन संपत्तियों का सदुपयोग करना चाहिए।
इतनी बात अपने मन में बिठाकर, फिर यह सोचना ठीक है, कि यह सेवा परोपकार का अवसर पता नहीं कल रहे, या न रहे; इसलिए आज ही शुभ कर्मों का आचरण जल्दी से जल्दी कर लिया जाए, ताकि हमारा इस जीवन का भविष्य तथा अगला जन्म भी, ये दोनों उत्तम हो जाएं।
- स्वामी विवेकानंद परिव्राजक
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