आज का वैदिक विचार

 


                                                                       


 



    सब लोग आपके मित्र नहीं हो सकते, और सब लोग आपके शत्रु भी नहीं हो सकते
        जीवन में किसी व्यक्ति को, आप से लाभ होता है। और किसी व्यक्ति को, आप से हानि भी होती है। जिसको आपके व्यवहार से लाभ होता है, वह आपका मित्र अवश्य बनेगा। और जिसको आपके व्यवहार से हानि होती है, वह आपका शत्रु भी अवश्य बनेगा।
यह मित्रता और शत्रुता, लाभ और हानि पर आधारित है। लाभ और हानि, एक दूसरे को दिए जाने वाले सहयोग पर आधारित है। एक दूसरे को दिया जाने वाला सहयोग, परस्पर विचारों की समानता पर आधारित है। अर्थात यदि आपके विचार किसी व्यक्ति से मिलते   हैं, तो आप उसको सहयोग देंगे। यदि आपके विचार उसके साथ नहीं मिलते, तो आप उसको सहयोग नहीं देंगे।
अब संसार में देखा यह जाता है कि किन्हीं भी दो व्यक्तियों के विचार 100% आपस में नहीं मिलते।   उदाहरण, दो व्यक्तियों के, बहुत से विचार आपस में मिलते हैं, और कुछ विचार नहीं भी मिलते। उनके विचार आपस में जितने अधिक मिलते हैं, वे एक दूसरे को उतना ही अधिक सहयोग देते हैं। इस सहयोग देने से उनकी आपस में मित्रता बन जाती है। और यदि सहयोग देना तथा लेना, आगे भी चलता रहे, तो मित्रता आगे भी बढ़ती जाती है। 
परंतु जिन लोगों के विचार आपस में अधिक नहीं मिलते, वे एक दूसरे को सहयोग भी नहीं देते। जब सहयोग नहीं देते, तो उनमें मित्रता भी नहीं होती। 
आपस में विचार न मिलें, एक दूसरे को सहयोग न दें, यहां तक तो फिर भी चल जाता है। परंतु अनेक बार विचारों के न  मिलने से, एक दूसरे को हानि भी होने लगती है। जब हानि होने लगती है, बस वहीं से शत्रुता भी आरंभ हो जाती है। 
जन्म से कोई किसी का मित्र या शत्रु बनकर उत्पन्न नहीं होता। जिन भी लोगों में मित्रता या शत्रुता होती है, उसका आधार यही आपस में लाभ और हानि होना ही है।
        अब सोचिए, जब सब के विचार आपके साथ 100%  नहीं मिलते, तो सब लोग आपको पूरा सहयोग नहीं देंगे। आप भी दूसरों को 100% सहयोग नहीं देंगे।
इसलिए सब लोग आपके मित्र भी नहीं बनेंगे।  जिनको आपसे लाभ होगा, वे आपके मित्र बनेंगे। और जिनको आपसे हानि होगी, वे आपके शत्रु बनेंगे।
           तो इसलिये आप ऐसा न सोचें कि, सब लोग हमारे मित्र बन जाएंगे। ऐसा सोचना गलत है। 
सत्य तो यह है कि जिन को आप से लाभ होगा, वे ही आपके मित्र बनेंगे। और जिनको आपसे हानि होगी, वे आपके शत्रु बनेंगे। आपको बस इतना करना है, कि जानबूझकर किसी की हानि नहीं करनी, ताकि आपके शत्रु अधिक न बनें। 
      फिर भी आप के गुण कर्म स्वभाव और व्यवहार से किसी न किसी को हानि अवश्य होगी ही। चाहे उसकी मूर्खता या स्वार्थ के कारण ही हो। तो वह आपका शत्रु भी बनेगा ही। उस शत्रु को पहचानें, और उस से सावधान रहें। बस आप इतना ही कर सकते हैं। यदि आप इतना भी कर लेंगे, तो इस संसार में काफी कुछ सुख पूर्वक जी सकेंगे। मित्र और शत्रु तो सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान न्यायकारी परमात्मा के भी हैं। जबकि वह कभी किसी की कोई हानि नहीं करता। तो भी लोग अपनी मूर्खता और स्वार्थ के कारण ईश्वर के भी शत्रु बन जाते हैं। उसे गालियां देते हैं। यदि कुछ लोग आपके भी शत्रु बन जाएं, तो चिंता न करें।


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