वेद मंत्र
ओ३म् विद्यां चाविद्या च यस्तद्वेदोभयं सह। अविद्याया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययामृतमश्नुते ।।
-- यजुर्वेद ४०/१४.
भावार्थ :- जो मनुष्य विद्या और विद्या के स्वरूप को जानकर और इनके जड़ एवं चेतन पदार्थ साधक है, ऐसा निश्चय करके शरीर आदि जड़ और चेतन आत्मा का धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सिद्धि के लिए एक साथ प्रयोग करते हैं, वे लोग लौकिक दुःख से छूटकर पारमार्थिक सुख ( मोक्ष) को प्राप्त होते हैं ।यदि जड़ अविद्या प्रकृति आदि कारण वस्तु अथवा शरीर आदि कार्य वस्तु न हो तो परमात्मा जगत् की उत्पत्ति तथा जीव कर्मोपासना और ज्ञान की प्राप्ति कैसे कर सकते हैं? इसलिए न केवल जड़ (अविद्या) के द्वारा और न केवल चेतन (विद्या) के द्वारा, अथवा न केवल कर्म (अविद्या) और न केवल ज्ञान (विद्या) के द्वारा कोई भी व्यक्ति धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सिद्धि कर सकता है ।