वेद मंत्र

 


 


 



वेदाहमेतं पुरुषं महान्तमादिस्यवर्णं तमस: परस्तात् ।
  तमेव विदित्वातिं मृत्युमेति नान्य: पन्था विद्यतेऽयनाय।।
           यजुर्वेद अध्याय ३१ मंत्र १८   
                  
यदि मनुष्य इस लोक और परलोक= (अगले जन्म) के सुख तथा आनन्द की कामना करता है , तो उसे सर्व प्रथम स्वयंप्रकाश और आनन्दस्वरूप परमात्मा को जानने का प्रयास करना चाहिए ।तभी मनुष्य अथाह दु:ख के सागर  से पार हो सकता है।  यही सुखदायी मार्ग है इस से अलग मनुष्यों की मुक्ति का कोई मार्ग नहीं।


(परमात्मा का सानिध्य पाकर मनुष्य जिस भी क्षेत्र में चाहे उसी में चरम सीमा तक तरक्की कर सकता है। इसलिए यह मत  समझें कि परमात्मा की उपासना करने से आप किसी तरक्की से पिछड़ जाएंगे। बल्कि जिस फील्ड में आप कार्य कर रहे हो उसमें कार्य के लिए 2-3 गुना आपकी समझ और क्षमता बढ़ जाएगी। बस ध्यान यह रखें कि आप साधना के लिए किसी गलत जगह अर्थात अवैदिक क्षेत्र से ना जुड़ जाएं। 


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