वेद मंत्र

 


 


 



हे ईश्वर ! तू ही हमारा योग्य मित्र है 


विष्णोः कर्माणि पश्यत यतो व्रतानि पस्पशे ।
इन्द्रस्य युज्यः सखा ।।


( ऋग्वेद - १/२/७/१९ )


व्याख्यान -- हे जीवो ! "विष्णोः" व्यापकेश्वर के किये "कर्माणि" जगत् की उत्पत्ति , स्थिति , प्रलय आदि दिव्य कर्मों को "पश्यत" तुम देखो । ( प्रश्न ) -- किस हेतु से हम लोग जानें कि ये व्यपाक विष्णु के कर्म हैं ? ( उत्तर ) -- "यतो व्रतानि पस्पशे" जिससे हम जीव लोग ब्रह्मचर्यादि व्रत तथा सत्य-भाषणादि व्रत और ईश्वर के नियमों का अनुष्ठान करने को सशरीरधारी होके समर्थ हुए हैं , यह काम उसी के सामर्थ्य से है , क्योंकि "इन्द्रस्य , युज्यः , सखा" इन्द्रियों के साथ वर्तमान कर्मों का कर्त्ता , भोक्ता जो जीव इसका वही एक योग्य मित्र है , अन्य कोई नहीं , क्योंकि ईश्वर जीव का अन्तर्यामी है , उससे परे जीव का हितकारी कोई और नहीं हो सकता , इससे परमात्मा से सदा मित्रता रखनी चाहिए ।


 


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