वेद मन्त्र
प्राणाय नमो यस्य सर्वमिदं वशे।
यो भूतः असर्वस्येश्वरो यस्मिन्त्सर्वं प्रतिष्ठितम्॥--अथर्ववेद॥
जैसे प्राण के वश सब शरीर, इन्द्रियाँ होती हैं, वैसे परमेश्वर के वश में सब जगत्.रहता है। इत्यादि प्रमाणों के ठीक-ठीक अर्थों के जानने से इन नामों करके परमेश्वर ही का ग्रहण होता है, क्योंकि (ओ३म्) और अग्न्यादि नामों के मुख्य अर्थ से परमेश्वर ही का ग्रहण होता है, जैसा कि व्याकरण, निरुक्त, ब्राह्मण, सूत्रादि ऋषि मुनियों के व्याख्यानों से परमेश्वर का ग्रहण देखने में आता है, वैसा ग्रहण करना सब को योग्य है , परन्तु "ओ३म्" यह तो केवल परमात्मा ही का नाम है और अग्नि आदि नामों से परमेश्वर के ग्रहण में प्रकरण और विशेषण नियमकारक हैं। इससे क्या सिद्ध हुआ कि जहाँ जहाँ स्तुति, प्रार्थना, उपासना, सर्वज्ञ, प्रकरण और व्यापक, शुद्ध, सनातन और सृष्टिकर्त्ता आदि विशेषण लिखे हैं, वहीं वहीं इन नामों से परमेश्वर का ग्रहण होता है ।
महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती कृत सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम समुल्लास से उद्धृत
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