वैशेषिक
वैशेषिक
के लिए कहा गया, वह कालरूप कारण का वर्णन करता है। प्रत्येक कार्य के होने में काल अवश्य कारण रहता है इस शास्त्र के व्याख्याकारों ने कहा है- 'जन्यानां जनक: कालो जगतामाश्रयो मत:।' समस्त उत्पन्न होने वाले पदार्थों का काल कारण होता है। इसी मान्यता को स्वीकार करते हुए महाभारत आदि में कहा गया है-
काल: सृजति भूतानि काल: संहरते प्रजा:।
वस्तुमात्र की उत्पत्ति और संहार आदि में सर्वत्र काल की कारणता निर्बाध स्वीकार की जाती है। इस आधार पर श्वेताश्वतर उपनिषद् की प्रारम्भिक दूसरी कण्डिका में विश्व के कारणों का विवरण देने की भावना से उपनिषद्कार 'काल' का सर्वप्रथम उल्लेख किया है। इस मान्यता का मूल आधार वैशेषिक का यह सूत्र है-
नित्येष्वभावादनित्येषु भावात् कारणे कालारख्येति।
[२/२/९]
देर, जल्दी, एक साथ, पर, ऊपर, छोटा, बड़ा आदि व्यवहार नित्य पदार्थों में नहीं होता, अनित्यों में होता है, इससे सिद्ध है- कार्यमात्र के कारण रूप में 'काल' का नाम लिया जाता है। यह विवरण वैशेषिक दर्शन प्रस्तुत करता है।
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