उत्तमकर्मों के दाता प्रभु की भक्ति करें
उत्तमकर्मों के दाता प्रभु की भक्ति करें
परमपिता परमात्मा अपने आप को प्रकाशित तथा ज्ञान से भरने वाले हैं और इस ज्ञान तथा प्रकाश से हमें भी प्रकाशित करने वाले हैं | ऐसे परमात्मा का हम सदा स्मरण करते हैं | इस भावना को यजुर्वेद के इस मन्त्र में इस प्रकार दिखाया गया है :-
अग्ने ने सुपथा राये आस्मान् विश्वानि देव वयुयानि |
विद्वान् | युयोध्यस्मजुहुराणमेंनो भुयिष्ठांते नम उक्तिं विधेम || यजु.४०.१६ ||
स्वामी जी ने इस मन्त्र का भाष्य इस प्रकार किया है :- हे स्वप्रकाशक , ज्ञानरूप , सब जगत् के प्रकाश करनेहारे सकल सुखदाता परमेश्वर ! आप जिससे सम्पूर्ण विद्यायुक्त हैं , कृपा करके हम लोगों को विज्ञान व राज्यादि एश्वर्य की प्राप्ति के लिए अच्छे , धर्मयुक्त आप्त लोगों के मार्ग से सम्पूर्ण प्रज्ञान और उत्तम कर्म प्राप्त कराइये और हम से कुटिलतायुक्त पापरूप कर्म को दूर कीजिये | इस कारण हम लोग आपकी बहुत प्रकार की स्तुतिरूप नम्रतापूर्वक प्रशंसा सदा किया करें और सर्वदा आनंद में रहें |
इस्मंत्र में परमपिता परमात्मा को सम्बोधान्कराते हुए भक्त कहरहा है कि हे ईश्वर आप ;-
१ . स्वप्रकाशक , ज्ञानरूप :- अपने ही प्रकाश से स्वयं को प्रकाशित करते हैं और आपने अपने ही ज्ञान से स्वयं को ज्ञानवान् बनाया है क्योंकि आप को किसी अन्य से प्रकाश तथा ज्ञान लेने की आवश्यकता नहीं होती आप सदा ही प्रकाश पुंज तथा ज्ञान से भरपूर होते हैं |
२. प्रकाश करनेहारे सकल सुखदाता परमेश्वर :- इतना ही नहीं आप इस जगत् को भी प्रकाशित करने वाले हैं | सब को प्रकाशित करने के अतिरिक्त आप सुखदाता होने के कारण
३. सम्पूर्ण विद्यायुक्त :- इस सब के अतिरिक्त आप सब प्रकार की विद्याओं के दाता होने के कारण सब विद्याओं के भंडारी भी हैं |
४. हम लोगों को विज्ञान व राज्यादि एश्वर्य की प्राप्ति :- इस सब के भंडारी होने वाले प्रभु से भक्त प्रार्थना करता है कि हे प्रभु ! आप के पास विउल मात्रा में सब प्रकार के धन हैं | यह धन इस प्रकार के हैं कि इन्हें जितना भी खर्च करो कभी समाप्त नहीं होते | इसलिए हे प्रभु हमें वज्ञान आदि अर्थात् आगे बढ़ने के रूप में विज्ञान और अनेक प्रकार के धन दे कर राज्यादि रूपी धन - एश्वर्य हमें दें |
५. अच्छे , धर्मयुक्त आप्त :- आप हमें इस प्रकार के विद्वान् लोगों का साथ दें और उन्हें हमारे निर्देशक बनाएं जो उत्तमता के सब गुणों के धारण करने वाले हों तथा आप्त होते हुए सब प्रकार के धार्मिक गुणों से भी संपन्न हों ताकि उनके दिशानिर्देश में हम भी इन गुणों को ग्रहण कर सकें |
६. सम्पूर्ण प्रज्ञान और उत्तम कर्म :- हमें इस प्रकार का सहयोग देते हुए जितने भी प्रकार के ज्ञान तथा ज्ञान की शाखाएं हैं , वह सब और प्राणी मात्र के कल्याण के लिए , उसके सुखों को बढ़ाने के लिए जितने भी प्रकार के उत्तम कर्म हैं , वह सब हमें प्रदान कीजिये |
७. कुटिलतायुक्त पापरूप कर्म को दूर कीजिये :- इन उत्तम गुणों को देने के साथ ही हे प्रभु ! आप से यह भी विनती है कि हमारे अन्दर जितने भी कटिल तथा पापाचरण के भाव हैं , उन सब को हम से दूर कर दीजिये ताकि हम किसी के साथ भी नीचता पूर्ण व्यवहार न करें | इन पाप तथा कुटिलातापूर्ण व्यवहारों से मुक्त होकर सब उत्तम गुणों से युक्त होने के लिए हे प्रभु ! हम आपके चरणों के पास अपना आसन लगा कर आपकी स्तुति रूप प्रार्थना सदा करते रहें और सदा सुख में निवास करें |