स्वामी विवेकानंद परिव्राजक


       


 



 


 


 


अपने शक्ति सामर्थ्य के अनुसार कुछ न कुछ दान अवश्य करना चाहिए
        वेदों में शुभ कर्म करने का विधान है। जैसे यज्ञ करना, ईश्वर की उपासना करना, माता पिता एवं गुरुजनों की सेवा करना, प्राणियों की रक्षा करना, कमजोर व्यक्तियों की सहायता करना, वैदिक धर्म प्रचार में दान देना, शाकाहारी भोजन करना, व्यायाम करना, विद्या पढ़ना पढ़ाना, परोपकार करना इत्यादि। इन सब शुभ कर्मों में एक शुभ कर्म दान देना भी बताया गया है। अर्थात कुछ न कुछ दान अवश्य करना चाहिए। यह दान देना रूपी शुभ कर्म सभी को करना चाहिए, चाहे थोड़ा या अधिक ।
 ईश्वर ने सबको कुछ न कुछ संपत्तियां दी हैं। धन बल विद्या बुद्धि अन्न इत्यादि, अनेक प्रकार की शक्तियां योग्यताएं विद्याएँ कलाएं आपके पास हैं, जो ईश्वर की कृपा से तथा ईश्वर की कर्म फल व्यवस्था से आपको प्राप्त हुई हैं। वे कलाएं योग्यताएं संपत्तियाँ आपको इसलिए मिली हैं, कि आपने अपने पिछले जन्म में वेदों के अनुसार शुभ कर्म किए थे। उन्हीं के फलस्वरुप इस जन्म में आपको ये सब सुविधाएं और संपत्तियां प्राप्त हुई हैं।
जैसी सुविधाएं बुद्धिमत्ता अच्छे माता पिता विद्वान गुरुजन और अन्य भी धन संपत्ति आदि सुविधाएं, आपको इस जन्म में मिली हैं, क्या ऐसी ही आप अगले जन्म में भी प्राप्त करना चाहेंगे?
 यदि हां, तो इस जन्म में भी आपको बहुत से अच्छे कर्म करने पड़ेंगे। उन अच्छे कर्मों में से एक दान देना भी है। 
        यज्ञ करना, ईश्वर की उपासना आदि आदि ये सब शुभ कर्म तो करें ही। इनके साथ-साथ कुछ न कुछ योग्य पात्रों को दान भी अवश्य देवें। आपके पास धन कम हो तो कम ही दें।  जो आपसे भी कमजोर व्यक्ति हो, उसी को देवें। परंतु परीक्षा पूर्वक देवें। योग्य पात्र को ही दें। आलसी निष्क्रिय पुरुषार्थहीन व्यक्ति को दान न दें। 
         धन के अतिरिक्त और भी कोई संपत्ति आपके पास हो, विद्या हो, बल हो, सुझाव हो, वह भी आप दे सकते हैं। इस प्रकार से कोई न कोई दान आदि शुभ कर्म  अवश्य करें, जिससे आपको अगले जन्म में भी ये सब सुविधाएं प्राप्त हो सकें।
 - स्वामी विवेकानंद परिव्राजक


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