स्वाहा 

 


 


 


 


 


 


 



स्वाहा 
1. (स्वाहा) अथात्र स्वाहाशब्दार्थ प्रमाणम् निरुक्तकारा आहुः—‘स्वाहाकृतयः स्वाहेत्येतत्सु आहेति वा स्वा वागाहेति वा स्वं प्राहेति वा स्वाहुतं हविर्जुहोतीति वा तासामेषा भवति॥ निरु॰अ॰8। खं॰20॥


’ स्वाहाशब्दस्यायमर्थः—(सु आहेति वा) सु सुष्ठु कोमलं मधुरं कल्याणकरं प्रियं वचनं सर्वैर्मनुष्यैः सदा वक्तव्यम्। (स्वा वागाहेति वा) या स्वकीया वाग् ज्ञानमध्ये वर्त्तते, सा यदाह तदेव वागिन्द्रियेण सर्वदा वाच्यम्। (स्वं प्राहेति वा) स्वं स्वकीयपदार्थं प्रत्येव स्वत्वं वाच्यम्, न परपदार्थं प्रतिश्चेति। (स्वाहुतं ह॰) सुष्ठुरीत्या संस्कृत्य संस्कृत्य हविः सदा होतव्यमिति स्वाहाशब्दपर्य्यायार्थाः। स्वमेव पदार्थं प्रत्याह वयं सर्वदा सत्यं वदेम इति, न कदाचित् परपदार्थं प्रति मिथ्या वदेमेति॥3॥


2. ‘स्वाहाकृतयः, स्वाहेत्येतत्सु आहेति वा, स्वा वागाहेति वा स्वं प्राहेति वा, स्वाहुतं हविर्जुहोतीति वा। तासामेषा भवति॥’ निरु॰8.20. स्वाहाशब्दस्यायमर्थः—(सु आहेति वा) सु सुष्ठु कोमलं मधुरं कल्याणकरं प्रियं वचनं सर्वैर्मनुष्यैः सदा वक्तव्यम्। (स्वा वागाहेति वा) या ज्ञानमध्ये स्वकीया वाग्वर्त्तते, सा यदाह तदेव वागिन्द्रियेण सर्वथा वाच्यम्। (स्वं प्राहेति वा) स्वं स्वकीयपदार्थं प्रत्येव स्वत्वं वाच्यं, न परपदार्थं प्रति चेति। (स्वाहुतं हविर्जुहोतीति वा) सुष्ठु रीत्या संस्कृत्य संस्कृत्य हविः सदा होतव्यमिति स्वाहाशब्दपर्य्यायार्थाः॥3॥


(सु आहेति वा) सब मनुष्यों को अच्छा, मीठा, कल्याण करने वाला और प्रिय वचन सदा बोलना चाहिये। (स्वा वागाहेति वा) अर्थात् मनुष्यों को यह निश्चय करके जानना चाहिये कि जैसी बात उनके ज्ञान के बीच में वर्त्तमान हो, जीभ से भी सदा वैसा ही बोलें, उससे विपरीत नहीं। (स्वं प्राहेति वा) सब मनुष्य अपने ही पदार्थ को अपना कहें, दूसरे के पदार्थ को कभी नहीं। अर्थात् जितना-जितना धर्मयुक्त पुरुषार्थ से उनको पदार्थ प्राप्त हो, उतने ही में सदा सन्तोष करें। (स्वाहुतं ह॰) अर्थात् सर्व दिन अच्छी प्रकार सुगन्धादि द्रव्यों का संस्कार करके सब जगत् के उपकार करने वाले होम को किया करें। और ‘स्वाहा’ शब्द का यह भी अर्थ है कि सब दिन मिथ्यावाद को छोड़ के सत्य ही बोलना चाहिये ॥3॥


3.


स्वाहेति सत्यभाषणं, सत्यमानं सत्याचरणं, सत्यवचनश्रवणं च सर्वे वयं मिलित्वा कुर्य्यामेति सत्येनैव सर्वं व्यवहारं कुर्य्युः॥10॥ --*1) (प॰म॰य॰वि॰) *2) (ऋ॰भा॰भू॰ (ई॰स्तु॰प्रा॰या॰सम॰वि॰) *3) (ऋ॰भा॰भू॰ (वर्णाश्रमविषयः)


 



 sarvjatiy parichay samelan,marriage  buero for all hindu cast,love marigge ,intercast marriage  ,arranged marriage 


 rajistertion call-9977987777,9977957777,9977967777or rajisterd free aryavivha.com/aryavivha app



Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।