सदाचार

                             


साभार -धर्म शिक्षा 


लेखक -स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती 



 


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सदाचार


सत्परुषों का आचार सदाचार कहलाता है। जीवन में सदाचार का पालन करते हैं, वे शिष्ट और सभ्य कहलाते हैं, जो सदाचार का पालन नहीं करते अशिष्ट और असभ्य कहलाते हैं।


यहाँ पालन करने योग्य सदाचार के कुछ नियम लिखे जा रहे हैं


१. प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठना चाहिए व्यक्ति सूर्योदय से पूर्व उठते हैं, वे स्वस्थ, मेधावी धन-सम्पन्न बनते हैं


२. उठते ही प्रभु का गुणगान करना चाहिए प्रभु से जीवन में सब प्रकार की समृद्धि, उत्थान कल्याण की प्रार्थना करनी चाहिए। 


३. प्रात: अथवा जब भी प्रथम मिलें तभी मातापिता आदि वृद्धजनों का अभिवादन करना चाहिएचरण-स्पर्श पूर्वक उन्हें नमन करना चाहिए। ऐसा करने से आयु, विद्या, यश और बल की प्राप्ति होती हे 


४. नित्यप्रति व्यायाम करना स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त आवश्यक है। व्यायाम से शरीर नीरोग, स्वस्थ एवं हृष्ट-पुष्ट बनता है। आसन, प्राणायाम, भ्रमणदण्ड-बैठक-किसी-न-किसी प्रकार का व्यायाम अवश्य करें।


५. प्रतिदिन स्नान अवश्य करें। यथासम्भव ठण्डे जल से स्नान करें।


६. भोजन शुद्ध और सात्त्विक होना चाहिए अण्डे, मांस, मछली, शराब, बीड़ी-सिगरेट, पानचाय, काफी, सोडा, बोतल में बन्द कोई भी कोला आदि नहीं लेना चाहिए। सदा स्मरण रक्खें-'सादा खाना, पानी पीना और सौ वर्ष जीना'- यह स्वस्थ रहने और दीर्घायु प्राप्त करने का स्वर्णिम सिद्धान्त है


७. बड़ों का आदर करें। शिक्षकों का मानसम्मान करें।


८. महापुरुषों का सत्सङ्ग करें। गन्दे गानों, नाचथियेटर, सिनेमा और टी०वी० के चरित्र-हार से बचें__


_९. खड़े होकर पेशाब न करें। हृदय-गति बन्द होने का यह भी एक कारण है।


१०. सदा मीठा बोलें। सत्य और प्रिय बोलें। किसी को गाली न दें।


साभार -धर्म शिक्षा 


लेखक -स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती 


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