रावण और बाली का वध – कितना सही कितना गलत

 



रावण और बाली का वध – कितना सही कितना गलत


कुछ अज्ञानी लोग यह कहते देखे जाते हैं की प्रभु राम द्वारा रावण को मारना गलत था क्यूंकि रावण तो अपनी बहन शूर्पनखा का जो अपमान राम और लक्ष्मण ने किया था उसका बदला ले रहा था। रावण तो इस प्रकार से वीर कहलाया जायेगा जिसने अपनी बहन के लिए अपने प्राणों को आहुति दे दी।


सर्वप्रथम तो रावण की बहन का चरित्र संदेह वाला हैं जो वन में किसी अन्जान विवाहित पुरुषों पर डोरे डालती हैं। ऐसा महिला को सभ्य समाज में चरित्रहीन ही कहाँ जायेगा।


राम और लक्ष्मण आर्य राजकुमार थे जिनके लिये आर्य मर्यादा का पालन करना सर्वोपरि था इसलिए उन्होंने जब शूर्पनखा का आग्रह ठुकरा दिया तो शूर्पनखा ने उसे अपना अपमान समझा और प्रसिद्द हिंदी मुहावरा अपमान करने को नाक काटना भी कहते हैं।


यह भी गलत प्रचारित कर दिया गया की शूर्पनखा की शारीरिक हानि लक्ष्मण द्वारा की गयी थी।


शूर्पनखा राक्षसराज रावण की बहन होने के कारण अहंकारी और दंभी दोनों थी। उस किसी की भी न सुनने की आदत नहीं थी।


शूर्पनखा के बहकावे में आकार रावण ने सीता का अपहरण कर वेद विरुद्ध कार्य किया।


एक और रावण द्वारा सीता का अपहरण करना दूसरी और वेदों का विद्वान होने हमें यह सन्देश देता हैं की केवल विद्वान होने से ही सब कुछ नहीं होता। उसके लिए आचरण होना भी अत्यंत आवश्यक हैं इसीलिए श्री राम द्वारा रावण वध यह सन्देश भी देता हैं की केवल शाब्दिक ज्ञान ही सब कुछ नहीं हैं आचरण सर्वोपरि हैं।


हमारे इस कथन का समर्थन स्वयं महाभारत भी इस प्रकार से करती हैं।


चारों वेदों का विद्वान , किन्तु चरित्रहीन ब्राह्मण शुद्र से निकृष्ट होता हैं, अग्निहोत्र करने वाला जितेन्द्रिय ही ब्राह्मण कहलाता हैं- महाभारत वन पर्व 313/111


यही तर्क बाली पर भी लागु होता हैं। बाली सुग्रीव से ज्यादा बलशाली था और किष्किन्धा का राजा था। उसने अपने बल के अहंकार में आकर सुग्रीव को अपने राज्य से निकल दिया और सुग्रीव की पत्नी को अपने महल में बंधक बना लिया।


जब भगवान श्री रामचन्द्र जी बाली को मारते हैं तब बाली प्रश्न करता है?
दण्ड देने का अधिकार केवल राजा को है.


श्री राम जी तब उत्तर देते हैं- हे बाली - वन, पर्वत और सागर सहित यह सारी धरती हम इक्ष्वाकु वंशियों की है. सदा से हम इक्ष्वाकु वंशी इस पर शासन करते हैं। इस समय धर्मात्मा भरत इस पर शासन कर रहे है. उन्ही के आज्ञानुसार मैंने तुम्हे छोटे भाई की पत्नी को रखने के अपराध में दण्डित किया है.


कहने को बाली वीर था बलशाली था पर अत्याचारी था। उसके अत्याचार को समाप्त करना आर्य व्यवहार था। जो लोग यह कह कर श्री रामचंद्र जी की निंदा करने का प्रयत्न करते हैं की श्री राम जी ने छुप कर बाली को नहीं मारना चाहिए था वे शास्त्रों ने “शठे साच्यं समाचरेत” के सिद्धान्त को भूल जाते हैं जिसका अर्थ हैं “जैसे को तैसा”। बाली ने सुग्रीव पर अत्याचार किया और परनारी को अपने पास जबरदस्ती रखने का पाप कर्म किया उसकी सजा निति निपुण श्री राम जी महाराज ने उसे दी।


 


 


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