ओ३म् 🔥 🌹वेद के ईश्वर का स्वरुप🌹


यदि ईश्वर साकार है तो दिखना चाहिए, परन्तु दिखता नहीं ?
यदि चीटी के समान शरीर है तो सूर्य, भूमि, चन्द्रादि लोक को धारण नहीं कर सकता और यदि पर्वत के समान शरीर है तो चीटी आदि छोटे जन्तुओं के सिर में आंख जैसी सूक्ष्म वस्तु की रचना नहीं कर सकता !
यदि एक ही समय में ईश्वर निराकार और साकार दोनों प्रकार का है तो दो विरोधी बातें ईश्वर में नहीं हो सकती ? क्योंकि :- नैकस्मिन्न सम्भवात् (वेदान्त २/२/३३)
विप्रतिषेधाच्च (वेदान्त २/२/४५)
अर्थात एक ही वस्तु में एक साथ दो विरोधी धर्म नहीं यह सकते।
🔥जैसे निराकार और साकार !🔥


🌺निराकार और साकार दोनों का परस्पर में विरोध होने से निराकार ईश्वर साकार नहीं हो सकता !!🌺


🌹अत: ईश्वर निराकार है और तीनों कालों में निराकार ही रहता है। क्योंकि वेदादि शास्त्रों में ईश्वर को निराकार निर्विकार, कूटस्थ (न बदलने वाला) एकरस कहा है।🌹


राम, कृष्ण, परशुराम, बुद्ध आदि ये भी मनुष्य (जीव) ही थे। क्योंकि इनमें राग, द्वेष, क्षुधा, त्रषा, भय, शोक, दु:ख, सुख, जन्म, मरण आदि सभी बातें थी !!


प्रमाण-इच्छा द्वेष प्रयत्न सुख दु:ख ज्ञानान्यत्मनोलिंगमिति।
(न्याय दर्शन अ. १/आ. १/सूत्र १०)
प्राणापान निमेषोन्मेष मनोगतीन्द्रियान्तर विकारा: ।
सुखदु:खे द्वेष प्रयत्नाश्यात्मनो लिंगानि। (वैशेषिक दर्शन अ. ३/आ. २/ सूक्त ४)


अर्थ-जिसमें इच्छा (पदार्थों की प्राप्ति की अभिलाषा), द्वेष,प्रयत्न (पुरुषार्थ बल), सुख, दु:ख, विवेक (ज्ञान) हो उसे जीव कहते हैं !!
प्राण(श्वास को भीतर से बाहर निकालना,अपान(वायु को बाहर से भीतर लेना),निमेश(आंख का भींचना),उन्मेश (आंख का खोलना, मन (निश्चय,स्मरण और अहंकार करना), गति (चलना), इन्द्रिय (सब इन्द्रियों को चलाना), अन्त:विकार (भूख, प्यास, त्रषा, हर्ष, शोकादि) जिसमें हो उसे जीव कहते हैं।
परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध आदि में ये सभी बातें थी। अत: वे सभी मनुष्य (जीव) थे।


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