"मनुष्य जाति की उन्नति का क्या कारण है"..

 


 



"मनुष्य जाति की उन्नति का क्या कारण है"..
उत्तर =  महर्षि दयानन्द सरस्वती जी लिखते हैं... मनुष्य जाति के उन्नति का कारण सिर्फ और सिर्फ सत्योपदेश है... सत्योपदेश के विना अन्य कोई भी मनुष्य जाति की उन्नति का कारण नहीं है.....!
   महर्षि दयानन्द सरस्वती जी का पूरा जीवन सत्य पर ही आधारित है...!
  “सत्यं वद धर्मं चर का उपदेश किया है।” इसका अर्थ है कि सत्य बोलो, धर्म पर चलो। इससे संकेत मिलता है कि सत्य बोलना व सत्य का आचरण करना धर्म कहलाता है। अब सत्य व असत्य के स्वरुप पर ऋषि विचार करते हैं कि सत्य किसी पदार्थ के यथार्थ व वास्तविक स्वरूप को कहते हैं...!
 अन्त में सभी ग्रन्थों के सार के अनुसार महर्षि दयानन्द सरस्वती जी धर्म का सार संक्षेप व सरल भाषा में करते हैं कि
 “जो पक्षपात रहित न्याय, सत्य का ग्रहण, असत्य का सर्वथा परित्याग रूप आचार है उसी का नाम धर्म हैं...!” उपनिषदकार भी सत्य की परिभाषा करते हुए लिखते हैं---- सत्य से बढ़कर कोई धर्म नहीं और असत्य से बढ़कर कोई पाप नहीं...! सत्य से बढ़कर कोई ज्ञान नहीं, इसलिए सत्य का ही व्यवहार करना चाहिए...!
    “सत्यमेव जयते नानृताम्, सत्येन पन्था विततो देवयानी:।”अर्थात् सर्वदा सत्य की विजय और असत्य की पराजय होती है और सत्य ही से विद्वानों का मार्ग विस्तृत होता है। जिस प्रकार एक पृथ्वी है, एक सूर्य है, एक ही मानव जाति है ठीक इसी प्रकार मानवीय धर्म भी एक ही है जिस का आधार सत्य है, सब सत्यविद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं, उन सबका आदिमूल परमेश्वर है....!
     अपनी अमर कृति सत्यार्थ प्रकाश की भूमिका में ॠषि दयानंद सरस्वती जी लिखते हैं कि उनका इस ग्रंथ बनाने का प्रयोजन सत्य अर्थ का प्रकाश करना है। अर्थात् जो सत्य है उस को सत्य और जो मिथ्या है उस को मिथ्या प्रतिपादित करना है, जो जैसा है, उसको वैसा ही कहना, लिखना और मानना सत्य कहाता है। जो मनुष्य पक्षपाती होता है, वह अपने असत्य को भी सत्य और दूसरे विरोधी मत वाले के सत्य को भी असत्य सिद्ध करने में प्रवृत्त रहता है, इसलिए सत्य मत को प्राप्त नहीं हो सकता। सत्योपदेश ही मनुष्य जाति की उन्नति का कारण होता है।


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