मातृभूमि प्रेम
मातृभूमि प्रेम
जापान का एक चित्रकार भगवान बुद्ध के जीवन के अनूठे प्रसंगों को
अपनी तूलिका से चित्रित करने के उद्देश्य सारनाथ आया हुआ था।
वह बुद्ध के प्रसंगों को दीवारों पर अंकित करने के कार्य में दिन भर
मनोयोग से जुटा रहता रात के समय बटलोई में
कुछ चावल, दाल और आलू डालकर अपने लिए खिचड़ी बना लेता
एक दिन एक बौद्ध ने उसे एक डिब्बे में से चावल के कुछ दाने निकालकर
चावलों में मिलाते हुए देखा ।
उसने पूछा, 'क्या चावल इन दानों में कोई विशेषता है, जो तुमने डिब्बे में निकालकर मिलाए
चित्रकार ने उत्तर दिया, 'बंधु चावल के ये दाने मेरे देश जापान में उपजे हैं।
मैं इन्हें मातृभूमि का पवित्र प्रसाद मानकर प्रतिदिन अपने भोजन में मिला लेता हूं
इस माध्यम से मैं अपनी मातृभूमि से जुड़ा महसूस करता हूं।
बौद्ध भिक्षु जापानी चित्रकार का मातृभूमि प्रेम देखकर हतप्रभ रह गया
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