लक्ष्मन ने पंचवटी में कोई श्रंग रेखा नहीं खींची थी, ऐसा कोई विज्ञान नहीं है, बिल्कुल ग़लत है।

 


                                                                       





 


ब्रह्मचारी कृष्ण दत्त जी का कथन


-मुनिवरों! सबसे प्रथम भगवान कृष्ण ने पृथ्वी से एक' '' नाम की धातु को जाना और एक रूधेनु नामक धातु को जाना। वायु से संकेतु नाम की धातु को जाना, जल से त्रुटित जटा नाम की धातु को जाना। इसी प्रकार और भी धातुओं को जानते हुए उन्होंने शुभोशमणी नाम का यंत्र बनाया जो इस प्रकार का था कि जिससे अंतरिक्ष में रमण करने वाले परमाणुओं को एकत्र किया जिससे एक सुरकेतु नामक यंत्र बनाया और उससे महा अणुओं, त्रिसरेणु, महा त्रिसरेणु, एकत्रित करने लगे और उससे नाना यंत्रों का आविष्कार किया। बेटा ! तुम्हे स्मरण होगा कि भगवान कृष्ण ने एक यंत्र को जाना था जिसके द्वारा महाभारत युद्ध की जितनी भूमि थी उसको "श्रंगकेतु" नाम की रेखा से युद्ध क्षेत्र को सीमा बद्ध कर दिया था। जब संग्राम हुआ नाना प्रकार के अणुओं का प्रयोग किया गया, परन्तु उस रेखा में यह विशेषता थी कि जितना भी वैज्ञानिक यंत्रों का प्रभाव होता था, जिनसे राज्य के राज्यों का विध्वंस हो सकता था वह उस रेखा से बाहर नहीं जाता था। मुनिवरों ! देखो महाराज लक्ष्मण ने भी इस यंत्र को जाना। जब माता सीता ने लक्ष्मण को रक्षा करने की चुनौती दी थी उस समय वह पंचवटी में उस श्रंग रेखा को नियुक्त कर गए थे। आज मुनिवरों ! उन यंत्रों को जानने की आवश्यकता है, हमे पुनः से उन वैज्ञानिकों की आवश्यकता है।


           हे मेरे भोले आचार्य जनों ! आज मै यह क्या उच्चारण करने लगा, हमारा विषय था कि हमें प्रकृति पर शासन करना चाहिए, परन्तु हम किस प्रकार शासन कर सकते हैं ?  मुनिवरों !  उन यंत्रों को जानते हुए, यह सब यंत्र प्रकृति से जाने जाते हैं। उस प्रकृति में नाना प्रकार की धातु है उनको जानना हमारा कर्तव्य है, उन्हीं के लिए परिश्रम करना है, अपने जीवन का मंथन करना है और मंथन करते करते अंततः परम पिता परमात्मा को प्राप्त हो जाना है। यदि मानव अपने जीवन को उज्जवल और शिरोमणि बनना चाहता है तो सबसे प्रथम हमे यह जानना होगा कि विज्ञान क्या है ?  विवेक क्या पदार्थ है ?  प्रकृति पर शासन उसी काल में कर सकते हैं जब नाना प्रकार के यंत्रों  का आविष्कार किया जाता है , जिसका नाम भौतिक विज्ञान है।


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