खुद को हिन्दू नहीं आर्य कहो

 


                                         


 



पहली पुस्तक वेद
(1) कृण्वन्तो विश्वमार्यम ।*
अर्थ-सारे संसार को 'आर्य' बनाओ।
दूसरी पुस्तक मनुस्मृति
(2) मद्य मांसा पराधेषु गाम्या पौराः न लिप्तकाः।*
आर्या ते च निमद्यन्ते सदार्यावर्त्त वासिनः।।
अर्थ-वे ग्राम व नगरवासी जो मद्य, मांस और अपराधों में लिप्त न हों तथा सदा से आर्यावर्त्त के निवासी हैं वे 'आर्य' कहे जाते हैं।
तीसरी बाल्मीकि रामायण
(3) सर्वदा मिगतः सदिशः समुद्र इव सिन्धुभिः ।
आर्य सर्व समश्चैव व सदैवः प्रिय दर्शनः ।।-(बालकाण्ड)
अर्थ-जिस तरह नदियाँ समुद्र के पास जाती हैं उसी तरह जो सज्जनों के लिए सुलभ हैं वे 'आर्य' हैं जो सब पर समदृष्टि रखते हैं हमेशा प्रसन्नचित्त रहते हैं।
चौथी पुस्तक महाभारत
न वैर मुद्दीपयति प्रशान्त,न दर्पयासे हति नास्तिमेति।
न दुगेतोपीति करोव्य कार्य,तमार्य शीलं परमाहुरार्या।।(उद्योग पर्व)
अर्थ:-जो अकारण किसी से वैर नहीं करते तथा गरीब होने पर भी कुकर्म नहीं करते उन शील पुरुषों को 'आर्य' कहते हैं।
पांचवी वशिष्ठ स्मृति
कर्त्तव्यमाचरन काम कर्त्तव्यमाचरन ।
तिष्ठति प्रकृताचारे यः स आर्य स्मृतः ।।
अर्थ:-जो रंग, रुप, स्वभाव, शिष्ठता, धर्म, कर्म, ज्ञान और आचार-विचार तथा शील-स्वभाव में श्रेष्ठ हो उसे 'आर्य' कहते हैं।
छठी पुस्तक निरुक्त
आर्य ईश्वर पुत्रः।
अर्थ―'आर्य' ईश्वर के पुत्र हैं।
सातवीं विदुर नीति
आर्य कर्मणि रज्यन्ते भूति कर्माणि कुर्वते ।
हितं च नामा सूचन्ति पण्डिता भरतर्षभ ।।-(अध्याय १ श्लोक ३०)
अर्थ:-भरत कुल भूषण! पण्डित जन्य जो श्रेष्ठ कर्मों में रुचि रखते हैं, उन्नति के कार्य करते हैं तथा भलाई करने वालों में दोष नहीं निकालते हैं वही 'आर्य' हैं।
आठवीं पुस्तक गीता
अनार्य जुष्टम स्वर्गम् कीर्ति करमर्जुन।
–(अध्याय २ श्लोक २)
अर्थ:-हे अर्जुन तुझे इस असमय में यह अनार्यों का सा मोह किस हेतु प्राप्त हुआ क्योंकि न तो यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है और न स्वर्ग को देने वाला है तथा न कीर्ति की और ही ले जाने वाला है (यहां पर अर्जुन के अनार्यता के लक्षण दर्शाये हैं)।
नवीं पुस्तक चाणक्य नीति
अभ्यासाद धार्यते विद्या कुले शीलेन धार्यते।
गुणेन जायते त्वार्य,कोपो नेत्रेण गम्यते।।-(अध्याय ५ श्लोक ८)
अर्थ:-सतत् अभ्यास से विद्या प्राप्त की जाती है, कुल-उत्तम गुण, कर्म, स्वभाव से स्थिर होता है,आर्य-श्रेष्ठ मनुष्य गुणों के द्वारा जाना जाता है।
दशवीं नीति बचन
प्रायः कन्दुकपातेनोत्पतत्यार्यः पतन्नपि।
तथा त्वनार्ष पतति मृत्पिण्ड पतनं यथा।।
अर्थ:-आर्य पाप से च्युत होने पर भी गेन्द के गिरने के समान शीघ्र ऊपर उठ जाता है अर्थात् पतन से अपने आपको बचा लेता है,अनार्य पतित होता है तो मिट्टी के ढेले के गिरने के समान फिर कभी नहीं उठता।
११वीं पुस्तक अमरकोश
महाकुलीनार्य सभ्य सज्जन साधवः।-(अध्याय२ श्लोक६ भाग३)
अर्थ:-जो आकृति,प्रकृति,सभ्यता,शिष्टता,धर्म,कर्म,विज्ञान,आचार,विचार तथा स्वभाव में सर्वश्रेष्ठ हो उसे 'आर्य' कहते हैं।
१२वीं कौटिल्य अर्थशास्त्र
व्यवस्थितार्य मर्यादः कृतवर्णाश्रम स्थितिः।
अर्थ:-आर्य मर्यादाओं को जो व्यवस्थित कर सके और वर्णाश्रम धर्म का स्थापन कर सके वही 'आर्य' राज्याधिकारी है।
१३वीं पुस्तक पंचतंत्र
अहार्यत्वादनर्धत्वाद क्षयत्वाच्च सर्वदा।
अर्थ:-सब पदार्थों में उत्तम पदार्थ विद्या को ही कहते हैं।
१४वीं धम्मपद बौद्धों की
अरियत्पेवेदिते धम्मे सदा रमति पण्डितो।
अर्थ:-पण्डित जन सदा आर्यों के बतलाये धर्म में ही रमण करता है।
१५वीं पुस्तक पाणिनी सूत्र
आर्यो ब्राह्मण कुमारयोः।
अर्थ:-ब्राह्मणों में 'आर्य' ही श्रेष्ठ है।
१६वां काशी विश्वनाथ मंदिर के प्रवेश द्वार पर देखो


आर्य धर्मेतराणो प्रवेशो निषिद्धः।
अर्थ:-आर्य धर्म से इतर लोगों का प्रवेश वर्जित है।
१७वां पंडित का संकल्प ध्यान से सुनो
जम्बू दीपे भरतखण्डे आर्यावर्ते अमुक देशान्तर्गते।
ऐसा वाक्य बोलकर पौराणिक भाई भी संकल्प पढ़ते हैं अर्थात् यह आर्यों का देश 'आर्यावर्त्त' है।
१८वां आचार्य चतुर्सेन
उठो आर्य पुत्रो नहि सोओ।
समय नहीं पशुओं सम खोओ।
भंवर बीच में होकर नायक।
बनो कहाओ लायक-लायक।।
अर्थ:-तुम्हारा जीवन पशुओं के समान निद्रा के वशीभूत होने के लिए निर्माण नहीं हुआ है।यह समय तुम्हें पुरुषार्थ करने का है,यदि जीवन में तुम पुरुषार्थ करोगे तो किसी कहानी के नायक बनकर समाज के आगे उपस्थित होवोगे।
१९वां कविरत्न प्रकाश
आर्य-बाहर से आये नहीं,
देश है इनका भारतवर्ष।
विदेशों में भी बसे सगर्व,
किया था परम प्राप्त उत्कर्ष।।
आर्य और द्रविड जाति हैं,
भिन्नचलें यह विदेशियों की चाल।
खेद है कुछ भारतीय भी,
व्यर्थ बजाते विदेशियों सम गाल।।
२०वां प्रमाण कथावाचक पं०राधेश्याम बरेली वाले
जब पंचवटी में सूर्पणखा राम के पास मोहित होकर अपना विवाह करने की बात राम से कहती है,तब राम उत्तर देते हैं―
हम आर्य जाति के क्षत्रीय हैं,
रघुवंशी वैदिक धर्मी हैं।
जो करें एक से अधिक विवाह,
कहते वेद उन्हें दुष्कर्मी हैं।
२१वां मेरा निवेदन
  आप आजकल रामायण व महाभारत का सीरियल देख रहे हैं कहीं भी हिंदू शब्द अगर किसी भी पात्र ने कहा हो तो बताना।फिर हिंदुओं ऐसी मूर्खता क्यो कर रहे हो।या तो आप सीरियल को केवल पिक्चर की तरह मनोरंजन की दृष्टि से देखते हैं।यदि ज्ञान की दृष्टि से देखते तो आप अपने को कभी भूलकर भी हिंदू नहीं कहते।हिंदू तो आपकी हनुमान चालीसा, भागवत पुराण, तुलसी रामचरित मानस ,सत्यनारायण कथा की किताब में भी नहीं लिखा है।हर जगह केवल आर्य लिखा है यदि अब भी कुछ अकल आ गई तो समझ लो मुसलमानों ने आपको हिंदू शब्द दिया है।इस हिदू नाम के कलंक को मिटा दो और 🏵गर्व से कहो हम 🌺आर्य🌺हैं।आर्य का अर्थ होता है श्रेष्ठ, संयमी,ज्ञानी, धर्मात्मा जबकि हिंदू का अर्थ काला,काफिर होता है।अंत में राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त की इन पंक्तियों को सुनो और अपने को हिंदू कहना बंद करो आर्य कहो।
मैथिली शरण गुप्त
यह पुण्य भूमि प्रसिद्ध है।
इसके निवासी आर्य हैं।
विद्या कला कौशल्य के जो प्रथम आचार्य हैं।।
संतान यद्यपि आज इनकी है अधोगति में पड़े।
किंतु चिह्न इनकी सभ्यता के आज भी कुछ हैं खड़े।।


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