इन्द्रियाँ घोड़े हैं वेद मंत्र
इन्द्रियाँ घोड़े हैं
• आत्मानं रथिनं विद्धि शरीरं रथमेव तु।
बुद्धिं तु सारथिं विद्धि मन: प्रग्रहमेव च।।
(कठोपनिषद् : वल्ली-३, मन्त्र-३)
इन्द्रियाणि हयानाहु:.......(मन्त्र-४)।
भावार्थ:-
शरीर को रथ जानिए;
आत्मा रथ का स्वामी ‘रथी’ है;
मन लगाम और इन्द्रियाँ घोड़े हैं;
बुद्धि रथ हाँकने वाला ‘सारथि’ है।
• घोड़ों में बाह्य बल सबसे अधिक है;
ये मार्ग-मंज़िल तय नहीं कर सकते;
स्वामी को लक्ष्य तक पहुँचाते हैं;
इन्द्रियाँ आत्मा की लक्ष्यसिद्धि करें।
• वे लोग इन्द्रियों को खुला छोड़ते हैं;
अरे, इच्छाएँ कभी तो सन्तुष्ट होंगी।
यह विज्ञान-विरुद्ध फ़िलॉसफ़ी है;
कोरोना कभी सन्तुष्ट हो सकता है?
• वैदिक संस्कृति कहती है—‘न जातु
काम: कामानाम् उपभोगेन शाम्यति’;
भोग से इच्छाएँ कभी तृप्त नहीं होतीं;
जैसे घी से अग्नि बढ़ती ही जाती है।
• इन्द्रियों पर संयम रखना चाहिए;
यह लोगों को अति कठिन लगता है;
जब तक ‘सम्यक् अनुशासन’ न हो।
• कुमन अच्छे को अच्छा नहीं मानता;
कुबुद्धि अपने को ही अच्छा मानती है;
सम्यक् अनुशासन मार्ग बना देता है।
• सम्यक् अनुशासन यह है—
इन्द्रियों पर मन का नियन्त्रण हो;
मन पर बुद्धि का नियन्त्रण रहे;
बुद्धि आत्मा के सदा वश में रहे;
आत्मा परमात्मा का निर्देश माने;
प्रभु प्रतिक्षण निर्देशन करता है।
• प्रत्येक देशकालव्यक्ति के लिए
यह जीवन का पूर्ण विज्ञान है।