हमारा अभिवादन

हमारा अभिवादन


साभार -धर्म शिक्षा 


लेखक -स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती 



एक-दूसरे से मिलने पर परस्पर अभिवादन का प्रकार क्या हो? अभिवादन का प्राचीन और आज भी


सर्वश्रेष्ठ प्रकार एक-दूसरे के प्रति 'नमस्ते' कहना है'नमस्ते' करने का प्रकार है-दोनों हाथों को हटाने पास जोड़कर तथा सिर को झुकाकर 'नमस्ते' इस वाक्य का उच्चारण करना। इसकी व्याख्या पं० अयोध्याप्रसादजी वैदिक मिश्नरी के शब्दों में इस प्रकार है


 with With all the knowledge of my mind, with all the strength of my arms, with all the love of my heart, I bow to the soul unto you. __ अर्थात् मेरे मस्तिष्क में जितना ज्ञान है, हाथों में जितनी शक्ति है और हदय में जितना प्रेम है, उस सबके साथ मैं आपकी आत्मा के प्रति नमन करता हूँ।


 परस्पर 'नमस्ते' कहना और करना अभिवादन का सर्वोत्तम प्रकार है। वेद, उपनिषद्, रामायण, महाभारत, पुराण आदि में सर्वत्र नमस्ते का ही प्रयोग है। 'राम-राम', 'जय गोपाल', 'सीता-राम', 'राधेश्याम' आदि कहना सब अवैदिक है। जब राम आदि का जन्म भी नहीं हुआ था तब उनके माता-पिता और पर्वज क्या करते अथवा कहते थे?निःसन्देह वे सब 'नमस्ते' का ही व्यवहार करते थे। ___ 'नमस्ते' का अर्थ है-"मैं आपका मान्य करता हैं।" राम-राम आदि कहने से किसी का मान और सम्मान तो नहीं हुआ। इसी प्रकार Good-morning आदि शब्द भी हैं। Good-morning का अर्थ है-'अच्छी प्रातः । यह वर्णन तो हो सकता है, अभिवादन नहीं।'


___रामायण, महाभारत आदि में छोटों द्वारा बड़ों को, बड़ों द्वारा छोटों को, राजा द्वारा ऋषियों को, द्वारपाल द्वारा महाराज को 'नमस्ते' करने का उल्लेख मिलता है, 'राम-राम' आदि का नहीं_ 


_ 'नमस्कार' शब्द का प्रयोग भी अशुद्ध है। माता बच्चे से कहेगी-'बेटे! अपने पिता को नमस्कार करो', परन्तु पुत्र 'नमस्कार' का उच्चारण न करके 'नमस्ते' ही बोलेगा। नमस्कार का अर्थ है-नमः करनेवाला, अतः 'नमस्कार' शब्द का प्रयोग अशुद्ध है। इसी प्रकार 'नमस्कारम्' का प्रयोग भी अशुद्ध हैअशुद्ध एवं अवैदिक प्रकारों को छोड़कर सदा नमस्ते' का प्रयोग करना चाहिए


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