एकलव्य का अंगूठा--भाग पाँच 

 


 


 


 


 



एकलव्य का अंगूठा--भाग पाँच 


कुछ लोग एकलव्य को शुद्र बताने का प्रयास करते हैं | जबकि एकलव्य भील वनवासी था एवं  जरासंघ के सेनापति का बेटा था तथा बाद में सेना में लड़ा भी था ।


एकलव्य को धनुर्विद्या न सिखाने के पीछे राजनीतिक कारण सर्वविदित हैं। इसके बाद भी महाभारत में वेदव्यास ने द्रोणाचार्य की गलती ही बतायी है तथा इसे उपयुक्त नहीं माना है , जो की यह दर्शाता है के भारत के आदर्श सही का साथ देने वाले थे ।


गुरु द्रोण ने ही एकलव्य को अंगूलियों से ही बाणों का संधान करने की विधि का संकेत दिया था, इस प्रकार उन्होंने राज धर्म एवं गुरु धर्म दोनों का पालन किया था।


निषादों अर्थात् वनवासियों के साथ कोई भेदभाव न होकर उन्हें भी समानता का अधिकार प्राचीन काल में था, इसके अन्य प्रमाण भी है,,,,,,,


निषादों अर्थात् वनवासियों को यज्ञ में अधिकारी बताया है तथा उनके द्वारा यज्ञायोजन करवाने का भी उल्लेख है - 


 तयेवावृता निषादस्थपति। याजयेत्।।- आपस्तम्ब श्रौतसूत्र ९\९४


अर्थात निषाद से यज्ञ का प्रतिपादन करवाओ। 


यदि निषादों के साथ जातीय भेदभाव होता या उन्हें नीच - दलित समझा जाता तो उन्हें कदापि यज्ञ में सम्मलित न किया जाता और न ही यज्ञ के प्रतिपादन का अधिकारी घोषित किया जाता।



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