ईश्वर (परमात्मा) क्या है 

 



 


 


 


ईश्वर (परमात्मा) क्या है 


इसका उत्तर है कि जिससे यह संसार बना है, चल रहा है व अवधि पूर्ण होने पर जो इस ब्रह्माण्ड की प्रलय करेगा, उसे ईश्वर कहते हैं। वह ईश्वर कैसा है तो चारों वेद, उपनिषद व दर्शन सहित सभी आर्ष ग्रन्थों ने बताया है कि ईश्वर -


‘‘ईश्वर सच्चिदानन्द स्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनादि, अनन्त, निर्विकार, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, पवित्र व सृष्टिकर्ता है। (सभी मनुष्यों को) उसी की उपासना करनी योग्य है।


     ईश्वर जिसे ब्रह्म, परमात्मादि नामों से भी जाना जाता है , जो सच्चिदानन्द लक्षण युक्त है, जिसके गुण, कर्म, स्वभाव पवित्र हैं, सब सृष्टि का कर्ता, धर्ता, हर्ता व सब जीवों को कर्मानुसार सत्य न्याय से फलप्रदाता आदि लक्षण युक्त है, वह परमेश्वर है, (मैं) उसी को मानता हूं।


       जिसके गुण-कर्म-स्वभाव और स्वरूप सत्य ही हैं, जो केवल चेतनमात्र वस्तु है तथा जो कि, अद्वितीय, सर्वशक्तिमान, निराकार, सर्वत्र व्यापक, अनादि और अनन्त, सत्य गुणवाला है, और जिसका स्वभाव अविनाशी, ज्ञानी, आनन्दी, शुद्ध, न्यायकारी, दयालु और अजन्मादि है, जिसका कर्म सृष्टि की उत्पत्ति(सृजन) , पालन(स्थिति) और विनाश(प्रलय) करना तथा सब जीवों को पाप-पुण्य के फल ठीक-ठीक पहचानना है, उसी को ईश्वर कहते हैं।“


        यह शब्द महर्षि दयानन्द के उनके अपने ग्रन्थों में कहे व लिखे गये हैं। इससे अधिक प्रमाणिक, विश्वसनीय व विवेकपूर्ण उत्तर ईश्वर के स्वरूप व उसकी सत्ता का नहीं हो सकता। ईश्वर विषयक यह स्वरूप वेदों से तो स्पष्ट है ही, तर्कपूर्ण व सृष्टिकर्म के अनुकूल होने से विज्ञान से भी स्पष्ट है।


ईश्वर का स्वरूप इतना ही नहीं है अपितु कहीं अधिक व्यापक व विस्तृत है। इसके लिए हमारे जिज्ञासु बन्धुओं को वेद, दर्शन, उपनिषद सहित महर्षि दयानन्द के साहित्य जिसमें सत्यार्थप्रकाश, ऋगवेदादिभाष्य भूमिका, आर्याभिविनय वं अन्य ग्रन्थों सहित उनका वेद भाष्य भी है, उनका अध्ययन करना चाहिये।


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