द्रोणाचार्य बनाम अम्बेडकर

द्रोणाचार्य बनाम अम्बेडकर


गुड़गाव का नाम द्रोणाचार्य के नाम पर गुरुग्राम करने पर कुछ अम्बेडकरवादी बड़ा फुदक रहे है। घिसे पिटे एकलव्य के अँगूठे के किस्से का राग फेसबुक पर अलाप रहे है। उनका कहना है कि द्रोणाचार्य ने जातिवाद का समर्थन करते हुए अर्जुन से अधिक पात्र एकलव्य का अँगूठा इसलिए कटवा दिया क्यूंकि अर्जुन उन्हें अधिक प्रिय था।


वैसे तो मैं इस घटना को प्रक्षिप्त अर्थात मिलावटी मानता हूँ क्यूंकि बिना सिखाये कोई स्वयं से विद्या ग्रहण नहीं कर सकता। मगर फिर भी कोई वाद-विवाद करे तो उसे मेरा उत्तर यही है-


प्रथम तो हम कौनसा द्रोणाचार्य को सही कह रहे है। द्रोणाचार्य ने जो गलती कि उसकी पुनरावृति आरक्षण के माध्यम से दोबारा दोहराई है। जो अधिक लायक था उसे सवर्ण कहकर भूखा मार दिया और जो नौकरी का पात्र भी नहीं था। उसे सरकारी नौकरी की मलाई खिलाई। पात्र को वंचित किया और अपात्र को प्रोत्साहंन दिया। द्रोणाचार्य की एक गलती से महाभारत का युद्ध हुआ जिससे देश बर्बाद हो गया। आज तो न जाने कितने एकलव्यों के अँगूठे प्रतिदिन काटे जा रहे हैं? देश का कितना अहित इस आरक्षण ने किया हैं। इसका कुछ अंदाजा भी आरक्षण का समर्थन करने वालो को नहीं हैं।


अगर दलितों का कल्याण करना ही है तो प्राचीन वर्ण व्यवस्था के अनुसार जातिवाद का उन्मूलन करने और जो गरीब और वंचित हैं उन्हें शिक्षा का समान अवसर प्रदान करना, आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहन देना एवं गुण,और स्वभाव के अनुसार नौकरी देना ही इस समस्या का हल हैं।


डॉ विवेक आर्य


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