धर्म व कर्तव्य परस्पर पूरक शब्द हैं


 


 


 


धर्म व कर्तव्य परस्पर पूरक शब्द हैं.


मनुष्य का धर्म श्रेष्ठ ज्ञान व आचरण को धारण करना है. मत-मतांतर धर्म नहीं हैं अपितु यह तो विषयुक्त भोजन के समान हैं जिनमें विष तुल्य अविद्या भरी पड़ी है. इसी कारण मनुष्य के जीवन, समाज, देश और विश्व में रोग, शोक और अशांति है. इसका कारण वेदों को छोड़ना व उनसे दूर जाना है. वेदों ईश्वर प्रदत्त ज्ञान हैं. वेद ज्ञान की दृष्टि से पूर्ण हैं. वेदों की सत्य शिक्षाओं को अपनाकर ही हमारा कल्याण हो सकता है. सद्ज्ञान और सदाचरण की प्रेरणा से युक्त होने के कारण वेद की शिक्षाओं का पालन ही सब मनुष्यों का परम धर्म है. जब मनुष्य व समस्त संसार वेद की सत्य शिक्षाओं को जान व मान लेगा तो उससे अविद्या दूर होकर सर्वत्र सुख व शांति स्थापित हो सकती है. पृथ्वी सुख का धाम व राम राज्य सी बन जाएगी. यही हमारा लक्ष्य है. ओ३म् स्वस्ति.


 


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