धैर्य के धनी स्वामी दयानन्द

 धैर्य के धनी स्वामी दयानन्द



 लाहौर से स्वामी दयानन्द जी महाराज अमृतसर पधारे और सरदार भगवानसिंह के मकान में ठहरे। पण्डितों ने इस बार विरोध किया अपने चेलों सहित शास्त्रार्थ करने के लिए आए और अकड़ कर स्वामी जी के सम्मुख बैठ गये शास्त्रार्थ तो उन्हें क्या करना था, चेलों ने ईट पत्थर फेंकने आरम्भ कर दिये। सभा--स्थान को धूलि-वर्षा से धूसरित बना दिया। महाराज के इस अपमान को देखकर भक्तजन कपित हो उठे। उन्हें शान्त करते हुए स्वामी जी ने कहा- 'मत्त-मदिरा से उन्मत्त जनों पर कोप नहीं करना चाहिए। हमारा काम वैध का है। उन्मत्त मनुष्य को वैद्य औषध देता है निश्चय जानिये आज जो लोग मुझ पर इंट, पत्थर और धूल बरसाते हैं वही लोग पछता कर कभी पुष्प-वर्षा करने लग जायेगे। 


स्वामी जी सच में अद्भुत धैर्य के धनी थे।


इस तथ्य पर उनके जीवन से सम्बन्धित एक और घटना अच्छा प्रकाश डालती कार्तिक अमावस्या (३० अक्टूबर) का दिन था। डा० लक्ष्मणदास ने महाराज के जीवन की सब आशाएँ छोड़ने के साथ-साथ भक्तजनों से अनुरोध किया कि किसी अन्य सुयोग्य डाक्टर को भी महाराज को दिखाने के लिए बुलवाया जाए। अजमेर के सिविल सर्जन डा० न्यूमैन को बुलाया गया। उसने उनके रोग-भोग की अवस्था देखकर आश्चर्य से कहा--कि ये बड़े साहसिक और सहनशील हैं। इनकी नस-नस और रोम-रोम में रोग का विषेला कीड़ा घुसकर कुलबुलाहट कर रहा है, ये प्रशान्त-चित्त है। इनके तन-पिजर को महाव्याधि की ज्वाला-जलन ऐसे जलाए जाती है कि जिसे दूर से देखते ही कंपकपी छूटने  लगती है। पर ये हैं कि चुप-चाप चारपाई पर पड़े हैं  भक्त लक्ष्मणदास ने उनसे कहा कि महाशय, ये महापुरुष यह सुनकर डाक्टर महाशय स्वामी दयानन्द जी हैं यह सुनकर डाक्टर महाशय को अत्यधिक शोक हुआ । महाराज ने उसे बड़े वैद्य के प्रश्नों का उत्तर के संकेत-मात्र से दिया एक मुसलमान वैद्य पीर जी बड़े प्रसिद्ध थे। वे भी उनको देखने आये। उन्होंने आते ही कह दिया- "  इनको किसी कुल-कण्टक ने कालकूट विष देकर अपनी आत्मा ॐ को कालिख लगाई है। इनकी देह पर सारे चिन्ह विष प्रयोग-जन्य इ ही दिखाई देते हैं। " पीर जी ने भी महाराज का सहन-सामर्थ्य देख दाँतों में उंगली दबाते हुए कहा- "धैर्य का धरती-तल पर हमने दूसरा नहीं देखा। " उनकी इसी धैर्य शक्ति ने उन्हें यगों-२ के लिये अमर बना दिया



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